Book Title: Dhaturatnakar Part 1
Author(s): Lavanyasuri
Publisher: Rashtriya Sanskrit Sansthan New Delhi

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Page 615
________________ 598 धातुरत्नाकर प्रथम भाग 981 कुल बन्धुसंस्त्यान्योः। संस्त्यानं संघात: To have family to unite, to pile परिजनों को संगठित करना To go जाना 982 पल 983 फल 984 गतौ शल 985 हुल हिंसासंवरणयोश्च 986 क्रुशं आह्वानरोदनयोः 987 गतौ जन्मनि 989 रमिं क्रीडायाम् 990 षहि वृत ज्वलादिः। मषण। मर्षणं क्षमा। ज्वालाद- यो वृत्ताः समाप्ताइत्यर्थः 991 यजी देवपूजासंगतिकरणदानेषु 992 वेग् तन्तुसंघाते 993 व्यंग संवरणे। संवरणमाच्छादनम् __वेंग् स्पर्धाशब्दयोः। To kill, to cover To call, to lament To go To be produced To sport To forgive हिंसा करना, ढंकना बुलाना, रोदन जाना जन्म देना खेलना क्षमा करना 988 To worship, to go पूजा करना, जाना To weave बुनना To cover आच्छादन करना To compete, to make स्पर्धा करना, शब्द noise करना To sow the seeds बीज बोना To carry To go, to grow To speak To dwell ले जाना जाना, बढना बोलना निवास करना वद 999 घटिष 995 डुवपीं बीजसंताने। बीजानां संतानः क्षेपे विस्तारणम् 996 वहीं प्रापणे। 997 ट्वोश्वि गतिवृद्ध्योः । 998 व्यक्तायां वाचि वसं वृत यजादिः। निवासे। वर्तिताः समापिता यजादय इत्यर्थः 1000 चेष्टायाम्। चेष्टेहा क्षजुङ् गतिदानयोः 1002 व्यथिए भयचलनयोः 1003 प्रथिष् प्रख्याने। प्रख्यानं प्रसिद्धिः 1004 म्रदिष् 1005 स्खदिष् खदने। खदनं विदारणम् 1006 कदुङ् 1007 क्रदुङ् वैक्लव्ये। विक्लव: कातरस्तस्य 1008 क्लदुङ् भावः कर्म- वैक्लव्यम्। 1009 क्रपि कृपायाम्। 1010 जित्विरिष् संभ्रमे। संभ्रमोऽत्राकारिता 1011 प्रसिष् विस्तारे 1001 गुप मर्दने To do something To go, to give To fear, to move To be published To rub gently To tear off To be feeble, to be powerless To show mercy To hasten To spread चेष्टा करना गति करना, देना भय करना, चलना प्रकाशित करना मालिश करना फाड़ना दुबला होना, शक्तिहीन होना दया करना जल्दबाजी करना विस्तार करना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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