Book Title: Dashvaikalika Sutram
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Shripalnagar Jain S M P Trust
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श्रीदश- वैकालिक श्रीहारि० वृत्तियुतम्
चारकथा,
॥१७८॥
मिथ्यावादं कथयित्वा सम्यग्वादं कथयति सम्यग्वादं च कथयित्वा मिथ्यावादमिति, एवं विक्षिप्यतेऽनया सन्मार्गात् कुमार्गे।।
तृतीयमध्ययन कुमार्गाद्वा सन्मार्गे श्रोतेति विक्षेपणीति गाथाक्षरार्थः। भावार्थस्तु वृद्धविवरणादवसेयः, तच्चेदं- "विक्खेवणी सा चउब्विहा । क्षुल्लिकापन्नत्ता, तंजहा- ससमयं कहेत्ता परसमयं कहेड १ परसमयं कहेत्ता ससमयं कहेइ २ मिच्छावादं कहेत्ता सम्मावादं कहेइ ३
नियुक्तिः सम्मावादं कहेत्ता मिच्छावायं कहेइ ४ तत्थ पुव्विं ससमयं कहेता परसमयं कहेइ-ससमयगुणे दीवेइ परसमयदोसे उवदंसेइ, १९३-२०५ एसा पढमा विक्खेवणी गया । इयाणि बिइया भन्नइ-पुव्विं परसमयं कहेत्ता तस्सेव दोसे उवदंसेइ, पुणो ससमयं कहेइ, गुणे
कथानिक्षेपे य से उवदंसेड़, एसा बिइया विक्खेवणी गया । इयाणिं तइया- परसमयं कहेत्ता तेसुचेव परसमएसुजे भावा जिणप्पणीएहिं।
आक्षेपण्यादि
चतुर्विधधर्म भावेहि सह विरुद्धा असंता चेव वियप्पिया ते पुव्विं कहित्ता दोसा तेसिं भाविऊण पुणो जे जिणप्पणीयभावसरिसा घुण- कथा। क्खरमिव कहवि सोभणा भणिया ते कहयइ, अहवा मिच्छावादो णत्थित्तं भन्नइ सम्मावादो अत्थित्तं भण्णति, तत्थ पुव्विं णाहियवाईणं दिट्ठीओ कहित्ता पच्छा अस्थित्तपक्खवाईणं दिट्ठीओ कहेइ, एसा तइया विक्खेवणी गया । इयाणि चउत्थी विक्खेवणी, सा वि एवं चेव, णवरं पुव्विं सोभणे कहेइ पच्छा इयरेत्ति, एवं विक्खिवति सोयारं ति गाथाभावार्थः॥
0 विक्षेपणी सा चतुर्विधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा- स्वसमय कथयित्वा परसमयं कथयति, परसमय कथयित्वा स्वसमयं कथयति, मिथ्यावादं कथयित्वा सम्यग्वाद कथयति, सम्यग्वादं कथयित्वा मिथ्यावादं कथयति, तत्र पूर्व स्वसमयं कथयित्वा परसमयं कथयति-स्वसमयगुणान् दीपयति परसमयदोषान् उपदर्शयति, एषा प्रथमा विक्षेपणी गता । इदानीं द्वितीया भण्यते- पूर्व परसमयं कथयित्वा तस्यैव दोषान् उपदर्शयति पुनः स्वसमयं कथयति गुणांश्च तस्योपदर्शयति, एषा द्वितीया विक्षेपणी गत। इदानीं तृतीया- परसमयं कथयित्वा तेष्वेव परसमयेषु ये भावा जिनप्रणीतर्भावविरुद्धा असन्त एव विकल्पितास्तान् पूर्व कथयित्वा दोषांस्तेषामुक्त्वा पुनर्ये
॥१७८॥ जिनप्रणीतभावसदृशा घुणाक्षरमिव कथमपि शोभना भणितास्तान् कथयति, अथवा मिथ्यावादो नास्तिक्यं भण्यते सम्यग्वाद आस्तिक्यं भण्यते, तत्र पूर्व नास्तिकवादिनां दृष्टीः कथयित्वा पश्चादास्तिकपक्षवादिनां दृष्टीः कथयति, एषा तृतीया विक्षेपणी गता, इदानीं चतुर्थी विक्षेपणी- साऽप्येवमेव, नवरं पूर्व शोभनान् कथयति पश्वादितरान् । इत्येवं विक्षिपति श्रोतारमिति ।
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