Book Title: Dashvaikalika Sutram
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Shripalnagar Jain S M P Trust
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सभिक्षुः,
श्रीदशवैकालिक श्रीहारि० वृत्तियुतम् ॥ ४०९॥
निगमनम्।
सूत्रम् १-५ षट्काया
A
हउ66650866638
मूर्च्छया वसतिं भाटकगृहं वा, तथा प्रत्यक्षं च उपलभ्यमान एव जलगतान् अप्कायादीन् यः पिबति, तत्त्वतो विनाऽऽलम्बनेन, 8 दशममध्ययन कथं न्वसौ भिक्षुः, नैव भावभिक्षुरिति गाथार्थः ।। ३५७ ।। उक्त उपनयः, साम्प्रतं निगमनमाह
नियुक्तिः३५८ नि०- तम्हा जे अज्झयणे भिक्खुगुणा तेहिं होइ सो भिक्खू । तेहि असउत्तरगुणेहि होइ सो भाविअतरो उ॥३५८ ॥
यस्मादेतदेवं यदनन्तरमुक्तं तस्माद् येऽध्ययने प्रस्तुत एव भिक्षुगुणा मूलगुणरूपा उक्तास्तैः करणभूतैः सद्भिर्भवत्यसौ भिक्षुः । उतैश्च सोत्तरगुणैः पिण्डविशुद्ध्याधुत्तरगुणसमन्वितैर्भवत्यसौ भाविततर: चारित्रधर्मे तु प्रसन्नतर इति गाथार्थः ।। ३५८ ।। उक्तो
विराधको नामनिष्पन्नो निक्षेपः, साम्प्रतं सूत्रालापकनिष्पन्नस्यावसर इत्यादिचर्चः पूर्ववत्तावद्यावत्सूत्रानुगमेऽस्खलितादिगुणोपेतं भिक्षुः। सूत्रमुच्चारणीयम्, तच्चेदं
निक्खम्ममाणाइ अबुद्धवयणे, निच्चं चित्तसमाहिओ हविजा । इत्थीण वसं न आवि गच्छे, वंतं नो पडिआयइ जे स भिक्खू ।। सूत्रम् ॥
पुढविनखणे न खणावए, सीओदगं न पिए न पिआवए। अगणिसत्थं जहा सुनिसिअं, तं न जले न जलावए जे स भिक्खू॥ सूत्रम् २॥
अनिलेण न वीएन वीयावए, हरियाणि न छिंदे न छिंदावए । बीआणि सया विवजयंतो, सञ्चित्तं नाहारए जे स भिक्खू ।। सूत्रम् ३॥
।। ४०९।। वहणं तसथावराण होइ, पुढवीतणकट्ठनिस्सिआणं । तम्हा उद्देसिन भुंजे, नोऽवि पए न पयावए जे स भिक्खू ॥ सूत्रम् ४ ॥ रोइअनायपुत्तवयणे, अत्तसमे मन्निज छप्पि काए। पंच य फासे महव्वयाई, पंचासवसंवरे जे स भिक्खू ।। सूत्रम् ५ ।।
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466