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“जे जे बने कर्मों वडे मध्यस्थ थईने देखवं साक्षी बनीने देखता निज शुद्धरूप ज पेखवु "
क्या आपको अपने कर्तव्यों का बोध नहीं हैं ?
अपने-अपने कर्तव्यों का सही मार्गदर्शन चाहते हैं ?
* क्या आप कर्तव्यनिष्ठ बनना चाहते हैं ?
अपने कर्तव्यों के प्रति सजाग बनना क्या आप नहीं चाहेंगे ?
यदि हां !
तो फिर आपको १०८ से भी अधिक ग्रंथके रचयिता योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिश्वरजी महाराजा के द्वारा लिखित / रचित यह पुस्तक पढना ही रहा ।
कर्मयोग
: किंमत ९९ रुपये :
17 प्रकाशक-प्राप्तिस्थान
श्री अरूणोदय फाऊन्डेशन - कोबा जिला - गांधीनगर - ३८२००९, गुजरात
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