Book Title: Bhuvan Dipak Author(s): Padmaprabhusuri, Shukdev Chaturvedi Publisher: Ranjan Publications View full book textPage 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (ख) प्रश्नकालीन स्वर-सिद्धान्त : यह सिद्धान्त आदेशकर्ता के स्वर (श्वास) के आगमन और निर्गमन द्वारा शुभाशुभ फल का निरूपण करता है। ब्रह्माण्डवाद, पूर्व-निश्चयवाद एवं अदृष्ट पर आधारित होने के कारण यह सिद्धान्त कुछ जटिल माना गया है। (ग) प्रश्नाक्षर सिद्धान्त : प्रश्नकर्ता द्वारा उच्चारित प्रश्नाक्षरों से मानसिक स्थिति का पता लगाकर भावी फल का निर्णय इस सिद्धान्त के अनुसार किया जाता है। यह सिद्धान्त भनोविज्ञान पर आधारित है और विशुद्ध तात्कालिक प्रश्नों का विवेचन करता है। उक्त तीनों सिद्धान्तों में पहला समय सिद्धान्त विज्ञानसम्मत होने के कारण अधिक लोकप्रिय और समाज में प्रचलित है। पांचवीं शताब्दी से लेकर अठारहवीं शताब्दी तक इस सिद्धान्त पर आधारित शताधिक ग्रन्थों की रचना हुई है। प्रश्नशास्त्र के इन ग्रन्थों में, आचार्य पद्मप्रभु सूरि विरचित 'भुवनदीपक' सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रन्थ है। ___यह ग्रन्थ प्रश्नशास्त्र की जटिल गुत्थियों का विवेचन करने के कारण विद्वत्समाज में प्रचलित होते हुए भी अत्यन्त दुरूह माना गया है। अतः इस ग्रन्थ पर, साधारण जिज्ञासुओं तक के लिए बोधगम्य, सरल एवं सोदाहरण भाष्य लिखने की ओर मैं प्रवृत्त हुआ। मेरा विश्वास है कि इसको पढ़कर सामान्य पाठक भी प्रश्नशास्त्र के शास्त्रीय एवं जटिल नियमों को आसानी से हृदयंगम कर सकेगा। शुकदेव चतुर्वेदी एम० ए० ज्योतिषाचार्य (सिद्धान्त एवं फलित) साहित्याचार्य For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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