Book Title: Bhuvan Dipak
Author(s): Padmaprabhusuri, Shukdev Chaturvedi
Publisher: Ranjan Publications

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Page 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इस पुस्तक के बारे में 'ज्योतिष शास्त्र फलं पुराणगणकैरादेश इत्युच्यते,' भारतीय मनीषियों की इस मान्यता के अनुसार दैनन्दिन जीवन में घटने वाली विविध घटनाओं का विचार एवं विवेचन कर आदेश करना ही ज्योतिषशास्त्र का एकमात्र लक्ष्य है । इस लक्ष्य तक पहुँचने के लिए फलित ज्योतिष में जातक, ताजिक, प्रश्न, शकुन एवं सामुद्रिक आदि अनेक मार्ग बतलाये गये हैं। किन्तु इन सबमें प्रश्नशास्त्र का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। कारण यह है जातक एवं ताजिकशास्त्र का फलादेश जन्म समय पर आधारित होता है और लोगों को सामान्यतया अपना ठीक-ठीक जन्म समय ज्ञात नहीं होता। ठीक जन्म समय की जानकारी न होने के कारण प्रायः ९५% जन्मपत्र अशुद्ध पाये जाते हैं । सामुद्रिक एवं शकुनशास्त्र पर आधारित फलादेश भी एक प्रकार का अनुमानजन्य ज्ञान है, किन्तु इसकी प्रक्रिया उतनी सरल एवं स्पष्ट नहीं है कि साधारण पढ़ा-लिखा मनुष्य भी इसके द्वारा भविष्यत् के विषय में निश्चित जानकारी प्राप्त कर सके । केवल प्रश्नशास्त्र ही वह सरलतम मार्ग है, जिसका अवलम्बन कर मनुष्य दैनिक जीवन में सामने आने बाले समस्त प्रश्नों का समाधान खोज सकता है। प्रश्नशास्त्र जन्मपत्रिका एवं वर्षफल जैसी किसी लम्बी-चौड़ी गणित के बिना ही मान प्रश्न कुण्डली के आधार पर जटिलतम प्रश्नों का सूक्ष्म एवं स्पष्ट फल बतलाता है । इस शास्त्र में प्रश्न का फल विचार करने की मुख्यतः तीन रीतियां प्रचलित हैं : (क) प्रश्नकालीन समय-सिद्धान्त : यह सिद्धान्त समय के शुभाशुभत्व पर आधारित है, जिसका निर्णय प्रश्नकालीन कुण्डली में ग्रह स्थिति एवं ग्रह योगों द्वारा किया जाता है। For Private and Personal Use Only

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