Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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कषायप्रकरणम् ]
पञ्चमो मागः
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निर्यासेक्षुकाण्डेक्ष्विक्षुरकवमुकोशीराणीति द- यह कल्क त्रिदोषज ज्वर, श्वास, भ्रम, अरुचि, शेमानि शुक्रशोधनानि भवन्ति ।। क्विन्ध और दोगको नष्ट करता है। कूल एलवालुक, कायफल, समुद्रफेन,
___ (७२३४) शुण्ठयादिकल्कः (२) कदम्बनिर्यास, ईख, काण्डेक्षु, तालमखाना, वसुक
! (वृ. नि. र. | ज्वरा.) और खस; ये दश ओषधियां शुक्र शोषक कषाय
। भोजनादौ नरैर्मुक्तं शुण्ठीराज्यभयोत्थितं । द्रव्योंमें श्रेष्ठ हैं।
कलं तु सहते नित्यं नानादेशोद्भवं जलम् ।। (७२३२) शुण्ठीक्वाथ:
सोंठ, हर्र और राईके कल्कको हमेशा भोज(वृ यो. त.। त. ६२ ; यो. र. । ज्वरा. नके प्रारम्भमें खानेसे देश विदेशका पानी विकार वृ. नि. र. । जीर्ण ज्वरा.)
नहीं करता। अरुचिमनलमान्धं पीनसश्वासकासा
(मात्रा-१॥ माश।) नुदरमुदकदोषानाशु इन्यादशेषान् । (७२३५) शुण्ठयादिकल्कः (३) जनयति मतिकान्ति चित्तनेत्रप्रसादम,
(भा. प्र.। म. खं.) पलपरिमितशुण्ठीलोदसिद्धः कषायः ॥ । शुभयनाजीगुडं पिष्टं पीतमुष्णेन वारिणा ।
५ तोले सांठको कूट कर ४० तोले पानीमें जीमचेन वक्रेण तीब्र श्रीवज्वरं जयेत् ॥ पकावें और १० तोले शेष रहने पर छान लें। सांठ, और जीरके कल्कको गुड़में मिलाकर
इसे सेवन करनेसे अरुचि, अग्निमांच, पोनस, । गरम पानी, पुराने मद्य या तक्रके साथ पीनेसे तीन श्वास, कास, उदर रोग और जलदोष नष्ट होते ! शीत घर नष्ट होता है। तथा मति और कान्तिकी वृद्धि होती है एवं चित (७२३६) शुण्ठयादिकल्कः (४) प्रसन्न रहता और नेत्र स्वच्छ होते हैं।
(शा. सं. म. खं. 1 अ. ६) (७२३३) शुण्ठयादिकल्कः (१) शुद्धीतिलगुहैः कल्कं दुग्धेन सह योजयेत् । (हा. सं. । स्था. ३ अ. २)
| परिणामभवं शूलमामवातं च नाशयेत् ॥ शुण्ठीघनागजकणासुरदारुषान्या
सेठ, तिल और गुड़ समान भाग ले कर तिक्ताकलिन्दशमूलसमोऽपि कल्कः ।
कल्क बनावें । इसे दूधके साथ सेवन करनेसे परिश्रेष्ठस्त्रिदोषजनितज्वरनाशनाय णाम शूल और आमवातका नाश होता है । श्वासभ्रमारुचिविबन्धहदामयन्त्रः॥ (७२३७) शुण्ठ्यादिकषायः (१)
सेठि, नागरमोथा, गजपीपल, देवदारु, (यो. र. । खीरोगा.) धनिया, कुटकी, इन्द्रजौ और दशमूल समान भाग अष्ठीविल्वकषायं तु यवसक्तुसमन्वितम् । ले कर कल्क बनावें।
गर्भिणी पाययेद्वैधश्चर्यतीसारनाशनम् ॥
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