Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य रत्नाकरः
शकारादि सेठि और बेलके क्वाथमें जौका सत्तू मिला | रामठक्षारलवणचूर्ण दत्त्वा पिवेन्नरः । कर पिलानेसे गर्भिणीकी वमन और अतिसारका | वाताश्मरी इन्ति कृच्छमान्यमग्नेश्च तद्रजः ॥ नाश होता है।
कटशूरुगुदमेदस्थं वङ्क्षणस्थं च मारुतम् ।। (७२३८) शुण्ठ यादिकषायः (२) सेठ, अरनी, पाषाणभेद, सहजने और (ग. नि. । ज्वरा. १)
| वरनेकी छाल, गोखरु, हर्र और अमलतासके फलों
का गूदा समान भाग ले कर क्वाथ बनावें । शुण्ठीयवासकषाब्दकृतः कषायः ।। श्लेष्मोद्भवं शमयति ज्वरमाशु पीतः ॥
इसमें हींग, जवाखार और सेंधानमकका सोंठ, जवासा, बासा और नागरमोथेका काथ ।
| चूर्ण मिला कर सेवन करनेसे वातज अश्मरि, मूत्रसेवन करनेसे कफज ज्वर शीघ्र ही नष्ट हो
कृच्छ्, अग्निमांद्य, कटिस्थित वायु, उरुस्थित वायु, जाता है।
तथा गुद, लिंग और वंक्षण स्थित वायुका नाश
होता है। (७२३९) शुण्ठयादिक्वाथः (१)
__(७२४१) शुण्ठयादिक्वाथ: (३) ( हा. सं. । स्था. ३ अ. ४२)
( धन्व. । आमवाता. ; ग. नि. । आमवाता. : शुण्ठीकणाखदिर पाटलिकापटोली
व. से. ; यो. र. ; वृ. मा. । आमवाता.) मञ्जिष्ठदारुविषविल्वयवानिकानाम् । ।
| शुण्ठीगोक्षुरकक्वाथः प्रातः पातनिषेवितः । वासाफलत्रिकजलेन कषायसिद्धः
आमे वातकटीशूले पाचनो रुक्मणाशनः । पानानिहन्ति मनुजस्य च कुष्ठदोषम् ॥
सांठ और गोखरुका क्वाथ प्रातःकाल सेवन सेठ, पीपल, खैरसार, लाल कनेरकी छाल,
करनेसे आमवात, कटिशूल और शरीर पीड़ा नष्ट पटोल, मजीठ, देवदारु, अतीस, बेलकी छाल,
होती है । यह क्वाथ पाचक भी है । अजवायन, बासा और त्रिफला समान भाग ले कर क्वाथ बनावें ।
(७२४२) शुण्ठयादिक्वाथः (४) इसके सेवनसे कुष्ठ नष्ट होता है।
( वृ. नि. र. । पित्तातीसारा.) (७२४०) शुण्ठयादिक्याथः (२) शुण्ठीसुवर्चलाहिगुरभयेन्द्रगवा मताः। ( वृ. यो. त. । त. १०२ ; वृ. मा. । अश्मयः;
पित्तातिसारहत्क्वाथो निपीतो मधुना सह ॥ व. से. । अश्मर्य. यो. र.; वृ. नि. र. । अश्भर्य. सेठ, हुलहुल, होंग, हरं, और इन्द्रजौ समान
ग. नि. । अश्मर्य. २९) | भाग ले कर क्वाथ बनावें । शुण्ठ यग्निमन्थपाषाणभिच्छिग्रुवरुणागोक्षुरैः। इसमें शहद मिलाकर पीनेसे पित्तातिसार नष्ट अभयारग्वधफलैः क्वाथं कृत्वा विचक्षणः॥ होता है ।
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