SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कषायप्रकरणम् ] पञ्चमो मागः - निर्यासेक्षुकाण्डेक्ष्विक्षुरकवमुकोशीराणीति द- यह कल्क त्रिदोषज ज्वर, श्वास, भ्रम, अरुचि, शेमानि शुक्रशोधनानि भवन्ति ।। क्विन्ध और दोगको नष्ट करता है। कूल एलवालुक, कायफल, समुद्रफेन, ___ (७२३४) शुण्ठयादिकल्कः (२) कदम्बनिर्यास, ईख, काण्डेक्षु, तालमखाना, वसुक ! (वृ. नि. र. | ज्वरा.) और खस; ये दश ओषधियां शुक्र शोषक कषाय । भोजनादौ नरैर्मुक्तं शुण्ठीराज्यभयोत्थितं । द्रव्योंमें श्रेष्ठ हैं। कलं तु सहते नित्यं नानादेशोद्भवं जलम् ।। (७२३२) शुण्ठीक्वाथ: सोंठ, हर्र और राईके कल्कको हमेशा भोज(वृ यो. त.। त. ६२ ; यो. र. । ज्वरा. नके प्रारम्भमें खानेसे देश विदेशका पानी विकार वृ. नि. र. । जीर्ण ज्वरा.) नहीं करता। अरुचिमनलमान्धं पीनसश्वासकासा (मात्रा-१॥ माश।) नुदरमुदकदोषानाशु इन्यादशेषान् । (७२३५) शुण्ठयादिकल्कः (३) जनयति मतिकान्ति चित्तनेत्रप्रसादम, (भा. प्र.। म. खं.) पलपरिमितशुण्ठीलोदसिद्धः कषायः ॥ । शुभयनाजीगुडं पिष्टं पीतमुष्णेन वारिणा । ५ तोले सांठको कूट कर ४० तोले पानीमें जीमचेन वक्रेण तीब्र श्रीवज्वरं जयेत् ॥ पकावें और १० तोले शेष रहने पर छान लें। सांठ, और जीरके कल्कको गुड़में मिलाकर इसे सेवन करनेसे अरुचि, अग्निमांच, पोनस, । गरम पानी, पुराने मद्य या तक्रके साथ पीनेसे तीन श्वास, कास, उदर रोग और जलदोष नष्ट होते ! शीत घर नष्ट होता है। तथा मति और कान्तिकी वृद्धि होती है एवं चित (७२३६) शुण्ठयादिकल्कः (४) प्रसन्न रहता और नेत्र स्वच्छ होते हैं। (शा. सं. म. खं. 1 अ. ६) (७२३३) शुण्ठयादिकल्कः (१) शुद्धीतिलगुहैः कल्कं दुग्धेन सह योजयेत् । (हा. सं. । स्था. ३ अ. २) | परिणामभवं शूलमामवातं च नाशयेत् ॥ शुण्ठीघनागजकणासुरदारुषान्या सेठ, तिल और गुड़ समान भाग ले कर तिक्ताकलिन्दशमूलसमोऽपि कल्कः । कल्क बनावें । इसे दूधके साथ सेवन करनेसे परिश्रेष्ठस्त्रिदोषजनितज्वरनाशनाय णाम शूल और आमवातका नाश होता है । श्वासभ्रमारुचिविबन्धहदामयन्त्रः॥ (७२३७) शुण्ठ्यादिकषायः (१) सेठि, नागरमोथा, गजपीपल, देवदारु, (यो. र. । खीरोगा.) धनिया, कुटकी, इन्द्रजौ और दशमूल समान भाग अष्ठीविल्वकषायं तु यवसक्तुसमन्वितम् । ले कर कल्क बनावें। गर्भिणी पाययेद्वैधश्चर्यतीसारनाशनम् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy