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भारत-भैषम्य - रत्नाकरः
शोभाञ्जनं शङ्खनाभी कगुकाः षष्टिकास्तथा । एषां कल्कं मधुयुतं पाययेत्तण्डुलाम्बुना ॥ अर्शोसि शमयत्येष पीतः पिचात्मकानि तु । रक्तपित्तमतीसारं रक्ताशसि च नाशयेत् ॥
सिरसकी जड़, सेंभलके फूल, तिनिशके फूल, पलाशका गोंद, बेरीका गोंद, अर्जुनका गोंद, लोष, मोचरस, अरलुकी छाल, चौलाई, मुलैटी, अर्जुनके फूल, धायके फूल, लोधके फूल, सहजनेकी छाल, शंखनाभि, कङ्गुनी और साठीके चावल समान माग ले कर सबको एकत्र मिला कर पानीके साथ पीस कर कल्क बनावें ।
इसमें शहद मिला कर चावलों के पानी के साथ सेवन करनेसे पित्तज अर्श, रक्तपित्त, अतिसार और रक्ताका नाश होता है ।
इति
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समघुशर्कर एष कषायको
[शकारादि
जयति बालमृगाक्षि तृतीयकम् ॥
लाल चन्दन, धनिया, सोंठ, खस, पोपल और नागरमोथा समान भाग ले कर काथ बनावें ।
इसमें शहद और खांड मिला कर पीने से तृतीयक ज्वर नष्ट होता है ।
(७२२९) शीतप्रशमनो दशको महाकषायः
( च सं. 1 सू. अ. ४ )
तगरागुरुधान्यकशृङ्गवेरभूतिकवचाकण्टकारिकानिमन्य. श्योनाकपिप्पल्य इति दशे मानि शीतभशमनानि भवन्ति ।
तगर, अगर, धनिया, सोंठ, अजवायन, वच, कटेली, अरणी, सोनापाठा और पीपल; ये दश ओषधियां शीत प्रशमन कषायद्रव्योंमें श्रेष्ठ हैं ।
(७२२७) शिरोविरेचनीयो दशको
महाकषायः ( च. सं. । सू. अ. ४ )
ज्योतिष्मतीक्षवकमरीचपिप्पलीविडङ्ग- (७२३०) शुक्रजननो दशको महाकषायः
शिग्रसर्षपापामार्गतण्डुल श्वेतामहाश्वेता दशेमानि शिरोविरेचनोपगानि भवन्ति ।
मालकंगनी, नकछिकनी, काली मिर्च, पीपल, बायबिडंग, सहंजना, सरसों, अपामार्ग (चिरचिटे) के चावल, सफेद और काली कोयल ।
ये दश पदार्थ शिरोविरेचनमें उपयोगी हैं। (७२२८) शिशिरादिकषायः (बृ. नि. र. । विपमञ्चरा. ; वै. जी. 1 विलास १; यो. र. । ञ्चरा. ) शिशिरः सघनः समहौषधः सनलदः सकणः सपयोधरः ।
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( च. स. । सू. अ. ४ )
पर्णी माषपर्णीमेदानृक्ष रुहाजटिलाकुलिङ्गा इति जीवकर्षभककाकोलीक्षीरकाकोलीमुद्गदशेमानि शुक्रजननानि भवन्ति ।
जीवक, ऋषभक, काकोली, क्षीर काकोली, मुद्गपर्णी, माषपर्णी, मेदा, वन्दा, काकड़ासिंगी और जटामांसी; ये दश ओषधियां शुक्रजनक हैं । (७२३१) शुक्रशोधनो दशको महाकषायः ( च. स. । सू. अ. ४ ) कुष्ठैलवालुककट्फलसमुद्रफेनकदम्ब