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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org पञ्चमी भागः thereमकरणम् ] सहजने और बरनेकी छालका काथ जवाखार मिला कर पीने से कफज अश्मरि शीघ्रही नष्ट हो जाती है । (७२२१) शित्वगादिकषायः ( ग. नि. । कृम्य. ७ ) शिग्रुत्वक्त्रिफलाभ्यां तु कृतः क्वाथो निषेवितः। जठरस्थान क्रिमीन क्षिममुद्धरत्यविचारतः ॥ सहजनेकी छाल और त्रिफलाका काथ सेवन करने से उदरके कृमि नष्ट हो जाते हैं । (७२२२) शिग्रुमूलक्वाथः ( यो. र.; वृ. नि. र. | अश्मर्य. ; वं. से. । अश्म. ) क्वाश्च शिग्रुमूलोत्थः कदुष्णाश्मरिपातनः । क्षीरामभुम्बर्हिशिखामूळे वा तन्दुलाम्बुना ॥ सहजने की छालका मन्दोष्ण काथ पीनेसे अमर निकल जाती है । मयूरशिखाकी जड़ को चावलोंके पानीके साथ सेवन करनेसे भी अमरि नष्ट हो जाती है। पथ्य- दूध भात । (७२२३) शिग्रुमूलादिक्षारः (ग. नि. । उदरा. ३२ ) शिग्रुमूलरसो वह्निः सैन्धवं ब्रह्मक्षकः । क्षारभक्षणतोऽमीषां याति सर्वोदरं शमम् ॥ सहजनेकी जड़के रस में चीता, सेंधा और पलाशका क्षार मिला कर सेवन करने से समस्त प्रकार के उदर रोग नष्ट होते हैं । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७२२४) शिघुमूलादियोगः ( वृ. मा. व. से. । विद्रध्य.) शिग्रुमूलं जले धौतं जलपिष्टं प्रगालयेत् । तसं मधुना पीला हन्त्यन्तर्विद्रधिं नरः ॥ ११ सहजनेकी जड़को जलसे धो कर पानीके साथ पीस लें और कपड़ेसे निचोड़ कर र निकालें | इसमें शहद मिला कर पीने से अन्तर्विद्रधि नष्ट होती है । (७२२५) शिवादिकषायः (वै. जी. । विलास ४ ; वृ. नि. र. । विद्र. ) शिग्रुदीप्यवरुणद्वियामिनी कुञ्जराशनकृतः कषायकः । बोल चूर्णसहितोन्तर स्थितं विद्रधिं प्रशमयेदसंशयम् ॥ सहजनेकी छाल, अजवायन, बरनेकी छाल, दारूहल्दी और पीपलवृक्ष (अस्वस्थ ) की छाल समान भाग ले कर काथ बनावें । | हल्दी, इसमें बोलका चूर्ण मिला कर सेवन करने से अन्तर्विद्रधि अवश्य नष्ट हो जाती है। For Private And Personal Use Only (७२२६) शिरीषमूलादिकल्कः ( ग. नि. | अर्शो. ) 1 शिरीषमूलं पुष्पं च शाल्मले स्तिनिशस्य च । निर्यासश्च पलाशस्य वदर्याः ककुभस्य च ॥ रोत्रं शाल्मलिनियसः कटुङ्गस्तण्डुलीयकः । मधुकार्जुनपुष्पाणि धातकीरोधयोरपि ॥
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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