________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भारत-भैषज्य रत्नाकरः
[ মাৰি (७२१४) शालिपर्यादिक्वाथ: (२) (७२१७) शाल्मलीयोगः ( व. से. । बालरोगा.)
(बृ. यो. त. । त. १०३ ) शालिपर्णी पृश्निपी घोटात्वक् क्वथितं जलम् । शाल्मलित्वग्रसः क्षौद्ररजनीचूर्णसंयुतः । सौद्रयुक्तं त्रिदोषनं सर्वातीसारनाशनम् ॥ पीतो निहन्ति निखिलान्ममेहानल्पवासरैः। शालपर्णी, पृष्ठपी और सुपारीकी छाल समान
सेंभलकी छालके रसमें शहद और हल्दीका
चूर्ण मिला कर सेवन करनेसे समस्त प्रकारके प्रमेह भाग ले कर काथ बनावें ।
शीघ्रही नष्ट हो जाते हैं। इसमें शहद मिला कर पीनेसे समस्त प्रकारके अतिसार नष्ट होते हैं।
(७२१८) शिक्वाथः (१)
( ग. नि. । शूला. २३ ) (७२१५) शालिपिष्टयोगः
| मातुलुङ्गरसोपेतः शिग्रुक्वाथस्तथापरः। ( रा. मा. । स्त्री रोगा. ३०)
सक्षारो मधुना पीतः पार्श्वदृस्तिशूलजित् ॥ उदुम्बरीक्वाथयुतं सितादय
सहजनेकी छालके काश्में बिजौ रेका रस, मुगन्धिशालिप्रभवं सितं च । जवाखार, और शहद मिलाकर पीनेसे पसली, हृदय या पिष्टमश्नाति न गर्भपात- और बस्तिका शूल नष्ट होता है।
पीडागसौ विन्दति जातु नारी ॥ (७२१९) शिग्रक्वाथः (२) सुगन्धित शाली चावलोंको पीस कर उनमें | (वृ. यो. त. । त. १०५) मिश्री मिला कर कठ्मरके काथके साथ पीनेमे गर्भ:
गभः शोथप्लीहोदरं हन्ति पिप्पली मरिचान्वितः । पातका भय जाता
अम्लवेतससंयुक्तः शियुक्वाथः ससैन्धवः ।। (७२१६) शाल्मलीमूलकल्कः सहं जनेके काधमें सेंधा नमक, अम्लवेत, (हा. सं. । स्था. ३ अ. ३)
पीपल और काली मिर्चका चूर्ण मिला कर पीनेसे
शोथ और प्लीहोदरका नाश होता है । शाल्मलीमूलत्वगुडदुग्धेन च पेषितं पानम् । पित्तातिसारशमनं सरक्तदाहेन शोषहरम् ।।
(७२२०) शिक्वाथः (३) ___ सेभलकी जड़की छालको दूधमें पीसकर गुड़
___(वृ. नि. र. । अश्मय.) मिलाकर पीनेसे पित्तातिसार, दाहयुक्त रक्तातिसार क्वाथो निपीतः सक्षारः शिग्रुत्वग्वरुणत्वचोः । और शोषका नाश होता है ।
कफजामश्मरी हन्ति शकाशनिरिव द्रुमम् ॥
For Private And Personal Use Only