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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कषायप्रकरणम् ] पञ्चमो भागः सरफोंकेकी जड़के कल्कको तक्रके साथ सखुवाकी छालके क्वाथमें गोमूत्र मिला कर पीनेसे बहुत पुराना तिल्ली रोग भी शीघ्रही नष्ट पीनेसे स्लीपद और मेदविकारका नाश होता है। हो जाता है । (७२११) शाखोटादियोगः (७२०८) शरपुङ्खारसयोगः (व. से. । व्रणा. ; वृ. मा. । व्रणा.) ( राजमार्त. । व्रणा. २५) कल्कः कानिकसम्पिष्टः स्निग्धः शाखोटक शस्त्रक्षते दशनचवितवाणपुजा त्वचः। मूलोद्भवं विनिदधीत रसं प्रयत्नात् । । | सुपर्ण इव नागानां वातशोथविनाशनः ।। तस्मिन्पुरीषमथवा महिषीसुतस्य सिहोड़ेकी स्निग्ध छालको कांजीमें पीस कर पाङ्गिगतं मसृणचूर्णितमाशु दद्यात् ॥ | पीनेसे वातज शोथ शीग्रही नष्ट हो जाता है। हथियारके ताजे घावमें, सरफोंकेकी जड़को (७२१२) शाईष्टादिक्काथः मुंहसे चबाकर उसका रस निकाल कर भरना चाहिये । अथवा भैसके बच्चे (कटरे) का पहिली (वृ. मा. । उदरा.) बारका किया हुवा गोबर खूब बारीक पीस कर शाङ्गेष्टानियूहः ससैन्धवस्तित्तिडीकसम्मिश्रः। भरना चाहिये। प्लीहव्युपरमयोगः पक्याम्ररसोऽथ वा समधु ।। (७२०९) शर्करादियोगः ___ मकोयके रसमें सेंधानमक और इमलीका गूदा (व. से. । उदावर्ता.) मिला कर सेवन करनेसे अथवा पके आमका रस शर्करेक्षुरसं क्षीरं द्राक्षारसमथापि वा। शहद मिला कर पीनेसे प्लीहावृद्धि नष्ट होती है। सर्वत्रैव प्रयुञ्जीत मूत्रकृच्छ्राश्मरीविधिम् ॥ (७२१३) शालिपर्यादिक्काथः (१) ईखका रस और दूध तथा खांड मिला कर (वृ. नि. र. । वातज्वरा. ; वृ. यो. त. । त. ५९) मुनक्काका रस पानस मूत्रकृच्छ् और शालिपर्णी बलाद्राक्षा गुडूची सारिखा तथा । अश्मरिका नाश होता है। आसां क्वाथं पिबेत्कोष्णं तीब्रवातज्वरच्छिदम्।। (७२१०) शाखोटककाथ: ___ शालपर्णी, खरैटी, मुनक्का, गिलोय और ( शा. सं. । खं. २ अ. २) सारिवा समान भाग ले कर क्वाथ बनावें । शाखोटवल्कलक्वाथं गोमूत्रेण युतं पिबेत् । इसे मन्दोष्ण करके पीनेसे तीव्र वातज्वर श्लीपदानां विनाशाय मेदोदोषनिवृत्तये ॥ । नष्ट होता है। पीने For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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