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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [शकारादि (७२०२) शतावर्यादिस्वरसः (१) । इसे तिलके काथके साथ सेवन करनेसे रक्तज ( ग. नि. । ज्वरा. १) गुल्म नष्ट होता है। शतावरीगुडूचीभ्यां स्वरसो यन्त्रपीडितः । (७२०५) शम्पाकादिक्वाथः गुडप्रगाढः शमयेत्सद्यो वातात्मकं ज्वरम् ।। (भै. र. । वातरक्ता.) ___शतावर और गिलोयके स्वरसको गुड़से मीठा शम्पाकामृतवासानामेरण्डस्नेहसंयुतम् । करके पीनेसे वातज्वर शीघ्रही नष्ट हो जाता है। पीत्वा क्वाथममुखातं क्रमात् सर्वाजं जयेत् ।। (७२०३) शतावर्यादिस्वरसः (२) अमलतास, गिलोय, और वासे (अडूसे) के ( यो. र. ; वृ. नि. र. । मूत्राघाता.) काथमें अण्डीका तेल (केष्ट्रायल) मिला कर पीनेसे सर्वाङ्गगत वातरक्त शीघ्रही नष्ट हो जाता है। वरीगोक्षुरभूधात्री मूलानां स्वरसं पलम् । माषमेकं यवक्षारं सौरं माषद्वयं तथा ॥ (७२०६) शम्पाकादिगणः द्विगुझं टङ्कणक्षारं सर्वमेकत्र मेलयेत् । (र. का. धे. । प्रमेहा.) पिबेत्तत्तु विनाशाय मूत्राघाते सुदारुणे॥ शम्पाकानलनिम्बराठबदरीपाठाश्च शाष्टिका ____ शतावरकी जड़का रस, गोखरुकी जड़का रस | स्फोतापाटलिकापटोलकुटनं सैरेयपारुषकाः। और भुई आमलेकी जड़का रस समान भाग ले कर व्याघ्रः सप्तदलामृतामधुरसाः कुष्ठज्वरच्छर्दिजित् सबको एकत्र मिलावें । ५ तोले इस रसमें १ माषा | कण्डूमेहकफामयान् सहविषानारग्वधादिर्जयेत् । जवाखार, २ माशे केशर और २ रत्ती सुहागेकी अमलतास, चीता, नीमकी छाल, मैनफल खील मिला कर पीनेसे भयंकर मूत्राघात भी नष्ट बेरीकी छाल, पाठा, करञ्ज, अनन्तमूल, रक्त करहो जाता है। वीर, पटोल, कुड़ेकी छाल, पियाबांसा (कटसरैया), (७२०४) शताहादिकल्कः फालसेकी छाल, लाल अरण्डकी जड़, सतौनेकी (व. से. । गुल्मा. ; वृ. मा. ; यो. र. । गुल्मा.) | छाल, गिलोय और मूर्वा । 'शताहा चिरबिल्वत्वग्दारुभाङ्गीकणाभवः। । इनका काथ कुष्ट, ज्वर, छर्दि, खाज, प्रमेह, कल्कः पीतो जयेदगुल्य तिलक्वाथेन रक्तजमा। कफ और विषविकारोंको नष्ट करता है। सोया, करञ्ज, दालचीनी, देवदारु, भरंगी (७२०७) शरपुवादिकल्कः और पीपल समान भाग ले कर सबको एकत्र ! (यो. चि. म. । अ. ४) मिला कर पानीके साथ पीस कर कल्क (पिठीसी) | शरपुङ्गायाः कल्कः पीतस्तक्रेण नाशयत्यचिरम्। बनावें। | चिरतरकालसमुत्यं प्लीहानां रूढमवगाहः ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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