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कषायप्रकरणम् ]
पश्चमो भागः
(७१९७) शतावर्यादिक्काथः (४) शतोवर, बला (खरैटी) की जड़ और मुनक्काके (भा. प्र.; ग. नि. । मूत्रकृच्छा. : वृ. मा.। मत्र- | साथ पकाया हुवा दूध मिसरी मिला कर पीने या कृच्छ्रा.; यो. र.; व. से.; च. द.; वृ. नि. । मूत्रक)
खरैटीके बीजों (बोज बन्द) का चूर्ण सेवन करनेसे
भ्रम (मूर्छा) का नाश होता है । शतावरीकाशकुशश्वदंष्टा विदारिशालीक्षुकसेरुकाणाम् ।
( ओषधियां २॥ तोले, दूध २० तोले, पानी क्वार्थ पिवेन्माक्षिकसम्पयुक्त
८० तोले । मिला कर पानी जलने तक पकावें।) कृच्छे सदाहे सरुजे विबन्धे ॥ (७२००) शतावर्यादियोगः शतावर, कास, कुशकी, जड़, गोखरु, विदा
( ग. नि. । रक्तपित्ता. ८) रीकन्द, शाली धान्य की जड़, ईखकी जड़, और
शतावरीगोक्षुरके शृतं वा कसेरु समान भाग ले कर काथ बनावें । इसमें शहद मिलाकर पीनेसे दाह और पीड़ा
__ शृतं पयो वाऽप्यथ पणिनीभिः । युक्त मूत्रकृच्छ्रका नाश होता है।
रक्तं निहन्त्याशु विशेषतस्तु (७१९८) शतावर्यादिवादशाङ्गकषायः
यन्मूत्रमार्गात्सरुनं प्रयाति ।।। (ग. नि. । वाता. १९)
शतावर और गोखरुके साथ या शालपर्णी,
पृष्टपर्णी, मुद्गपर्णी और माषपकि साथ पकाया शतावरीपुष्करमूलमुस्ता
हुवा दूध पीनेसे मूत्र मार्गसे पीड़ाके साथ निकलन पथ्यामृताः सातिविषाः सरास्नाः ।
वाला रक्त बन्द हो जाता है। वराटरूषः सुरदारु शुण्ठी
(ओषधियां २॥ तोले, दूध २० तोले, पानी दुरालभा वातहरः कषायः ।।
८० तोले । पानी जलने तक पकावें । ) शतावर, पोखरमूल, नागरमोथा, हर, गिलोय, अतीस, रास्ना, त्रिफल!, बासा, देवदार, सेांठ और (७२०१) शतावर्या दिरसः धमासा समान भाग ले कर क्वाथ बनार्वे ।।
(यो. र. । अमर्य.) यह क्वाथ वातव्याधिको नष्ट करता है। शतावरीमूलरसो गव्येन पयसा समः । (७१९९) शतावर्यादिपयः पीतो निपातयत्याशु ह्यश्मरी चिरजामपि ॥ (यो. र. । मूर्छा.)
शतावरके स्वरसको गोदुग्धमें गिला कर सेवन शतावरीबलामूलद्राक्षासिद्धं पयः पिबेत् । करनेसे पुरानी अश्मरी भी शीघ्र ही निकल ससितं भ्रमनाशाय बीजं वाट्यालकस्य च ॥ । जाती है।
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