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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - ----.--.... भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [शकारादि शतावरकी जड़को ठण्डे पानीमें पीस कर, (७१९४) शतावर्यादिकाथः (१) मिश्री मिला कर पीनेसे शर्कराका नाश होता है। (यो. र. । मूत्रकृच्छ्रा .) (७१९१) शतावरीयोगः शतावर्यास्तु मूलानां निष्क्वाथः ससिः मधु । (ग. नि. । अपस्मारा. ३) मूत्रदोष निहन्त्याशु वातपित्तकफोद्भवम् ।। क्षीरानाशी शतावर्याः प्रातमूलरसं पिबेत् ।। शतावरको जड़के क्वाथमें मिश्री और शहद मिला कर पीनेसे वातज, पित्तज तथा कफज मूत्रशृतं चूर्ण तथा क्षीरमपस्मारपशान्तये ॥ दोषों (मूत्रकृच्छादि) का नाश होता है। प्रातःकाल शतावरीकी जड़का रस, या शतावरका काथ, या चूर्ण अथवा शतावरसे सिद्ध किया (७१९५) शतावर्यादिकाथः (२) हुवा दूध सेवन करनेसे अपस्मार नष्ट होता है। (वृ. मा. । शूला. ; यो. र. ; ग. नि. । शला. इस प्रयोगके सेवन कालमें केवल दूध भात २३; च. द. । शूला. २६; भै. र. । शूला.) पर रहना चाहिये। शतावरी सयष्टयाहवाट्यालकुशगोक्षुरैः। भृतशीतं पिबेत्तोयं सगुडक्षौद्रशर्करम् ॥ (७१९२) शतावरीस्वरसः (भै. र. । प्रमेहा.) पित्तामुग्दाहशूलग्नं सघो दाइज्वरापहम् ।। शतावर, मुलैठी, खरैटी, कुश और गोखरु शतावर्या रसं नीत्वा क्षीरेण सह यः पिबेत् ।। समान भाग ले कर काथ बनावें । प्रमेहा विंशतिस्तस्य क्षयं यान्ति न संशयः॥ इसे ठण्डा करके गुड़, शहद या खांड मिला शतावरके रसको दूध में मिला कर पीनेसे २० । कर पीनेसे रक्तपित्त, दाह, शूल और दाह युक्त प्रकारके प्रमेह अवश्य नष्ट हो जाते हैं। ज्वरका नाश होता है। (७१९३) शतावर्यादिकषायः (७१९६) शतावर्यादिकाथः (३) (व. से. । रक्तपित्ता. ; यो. र. ; वृ. नि. र.) (वृ. मा. । शूला. ; वृ. नि. र. । शूला. ; भै. शतावरी वरा रास्नः काश्मर्यसपरूषकम् । र. ; यो. र. । शला.) पापयेद्रक्तपित्तघ्नं सद्यः शूलहरं परम् ।। शतावरीरसं क्षौद्रयुक्त प्रातः पिबेनरः । ____ शतावर, त्रिफला, रास्ना, खम्भारीकी छाल | दाहशूलोपशान्त्यर्थ सर्वपित्तामयापहम् ॥ और फालसेकी छाल समान भाग ले कर क्वाथ । शतावरके स्वरसमें शहद मिला कर प्रातःकाल बनावें। सेवन करनेसे दाह, शल और अन्य पित्तज रोगोंका इसके सेवनसे रक्तपित्त शीघ्र ही नष्ट हो नाश होता है। जाता है। १ क्षीरं क्षौद्रमिति पाठान्तरम् । For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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