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कषायपकरणम् ]
पञ्चमो भागः कुस्तुम्बरूणि नलदं मुस्तं चैवाप्नु सापयेत् ॥ बेलछाल, तुम्बर (धनियामेद) और गिलोय क्षौद्रेण सितया वापि युक्तः क्यायो अनिला- | समान भाग ले कर सबको पानीके साथ पोसकर
त्मके। कल्क (पिढीसी) बनावें। सोया, बच, कूठ, देवदारु, रेणुका, इसे धीमें मिला कर सेवन करनेसे शरीर गत कुस्तुम्बरु, जटामांसी (अथवा पोली खस), और वायु नष्ट होता है। नागरमोथा समान भाग ले कर काथ बनावें। । (मात्रा-४ माशे) इसमें शहद या मिश्री मिला कर पीनेसे वातज
। (७१८८) शतावरीकल्कः (२) चर नष्ट होता है।
( भा. प्र. । म. सं. २; वृ. यो. त । त. ६४) ( कफ विशेष हो तो शहद मिलाना चाहिये ।
| पीत्वा शतावरीकल्वं पयसा तीराय बयेत् । और वायुके साथ पित्त हो तो मिश्री मिलानी |
रक्तातिसारं पीत्वा वा तया सिदं घृतं नरः। चाहिये।)
शतावरीके कल्कको दूधके साथ सेवन करने (७१८६) शतमूलीकाथ: | और दुग्धाहारपर रहनेसे रक्तातिसार नष्ट होता है। (हा. सं. । स्था. ३ अ. १२.)
शतावरीके साथ सिद्ध घृत सेवन करनेसे भी शतमलिकायाः क्वयितः कषायः । | रक्तातिसार नष्ट होता है।
पीतः कणाचूर्णयुतः सुखोष्णः । नृणां निहन्यान्मरुतोद्भवं तु
(७१८९) शतावरीकल्कः (३) ___ कासं सशूलं च विपाचनं स्यात् ॥
(यो. र. । प्रसूतरो.) शतावरके मन्दोष्ण क्वाथमें पीपलका चूर्ण शतावरी क्षीरपिष्टा पीता स्वन्यक्विदिनी । मिला कर पीनेसे वातज कास और शलका नाश | कवोष्ण कणया पीतं सारं क्षीरविक्दनम् ॥ होता है।
(१) शतावरको दूधमें पोस कर पीनेसे
खियोंके स्तनोंमें दूध बढ़ जाता है। (७१८७) शतावरीकल्कः (१) ।
___(२) मन्दोष्ण दूधमें पीपलका चूर्ण मिला कर ( हा. सं. । स्था. ३ अ. २३)
पीनेसे भी स्तनोंमें दूध बढ़ जाता है। शतावरी वचा शुण्ठी रास्नाकदरशल्लकी। दशमूली बला बिल्वस्तुम्बुरु च गुइचिका ॥
नि (७१९०) शतावरीमूलयोगः एप कल्को घृतैर्युक्तो हन्ति वातं शरीरगम् ॥ (हा. स.। स्था. ३ अ. ३२)
सतावर, बच, सोंठ, राना, सफेद खैर, पिवेच्छतावरीमूलं शीतपानीपचूर्णितम् । शल्लको वृक्षका गोंद (या छाल), दशमूल, खरैटी, ! अतः शर्कररोगातः शर्करासंपयोजितम् ॥
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