Book Title: Bhairava Padmavati Kalpa
Author(s): Mallishenacharya, Shantikumar Gangwal
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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द्वितीयः सकलीकरण परिच्छेदः
स्नात्वा पूर्व मन्त्री प्रक्षालित रक्तवस्त्र परिधानः । सम्माजित प्रदेशे स्थित्वा प्रकली क्रियां कुर्यात् ॥१॥
[संस्कृत टोका]--'स्नात्वा' स्नानं कृत्वा । 'पूर्व' प्राक् । 'मन्त्री मन्त्रवादी । 'प्रक्षालित रक्तवस्त्र परिधान:' धौत लोहित वस्त्र परिधानः । 'सम्माजित प्रदेशे' मोमलिप्त प्रदेशे। 'स्थित्वा' उषित्वा । 'सकली फ़ियां' श्रात्मरक्षा विधानं कुर्यात् ॥१॥
हिन्दी टीका]-मंत्र साधक को प्रथम स्नानकर स्वच्छ धुले हुये लाल वस्त्रों को पहनकर, गोबर से लिपी हुई भूमि पर बैठकर सकलीकरणरूप आत्मरक्षा करनी चाहिये क्योंकि बहिरंग द्धि भी मंत्र साधन में कारगा है, अगर बरिरंग शुद्धि नहीं है, तो साधक को कभी भी मिति नहीं मिल सकती है। इसीलिये प्राचार्य ने यहाँ पर, शरीर शुद्धि, वस्त्र शुद्धि और भूमि शुद्धि का प्रतिपादन किया है ।।१।।
हाँ वामकराङ्ग ष्ठे तर्जन्यां हो च मध्यमायां है। ह्रौं पुनरनामिकायां कनिष्ठिकायां च ह्रः सुस्यात् १ ॥२॥
[संस्कृत टीका]-हाँ वामकराज प्ठे' वामकराङ्ग ष्ठाग्रे हामिति बोज विन्यसेत् । 'तर्जन्यां ह्रीं" तर्जन्यङ्ग ल्यग्रे ह्रीमिति बीजम् । 'मध्यमायां ह' मध्यमाङ्ग ल्यग्रे हमिति बीजम् । "ह्रौ पुनरनामिकायाम्' पुनः पश्चात् अनामिकाङ्गल्यग्रे हौमिति बीजम् । 'कनिष्ठिक यांच ह्रः' कनिष्टिका ल्यग्र ह्रः इति बोजम्, चः समुच्चये। एवं यथानुक्रमेण पञ्चशून्य बीज स्थापना स्यात् भवेत् ह्रां ह्रो ह ह्रौं ह्रः अङ्गाल्यग्रेषु न्यासाक्षराणि ॥२॥
हिन्दी टीका | बांये हाथ के अंगूठे के अग्नभाग में 'हाँ', तर्जनी अर्थात् अंगूठे के पासवाली अंगुली के अग्रभाग में "ह्रीं' मध्यमा यानी तर्जनी के पास वाली अंगुली के अग्रभाग में 'ह', अनामिका अर्थात् उसके मध्यमा के पास वाली अंगुली के अग्रभाग में "ह्रौं' और कनिष्ठिका यानी सबसे अन्तिम छोटी वाली अंगुली के अन भाग में 'हः' इस प्रकार पांच शून्य अक्षर बीजों की स्थापना करें ॥२॥
१. 'कारः' इति ख पाठ ।