Book Title: Bhairava Padmavati Kalpa
Author(s): Mallishenacharya, Shantikumar Gangwal
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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( १८६ )
कांटे हैं ऐसी बेर को लकड़ी से बिच्छू का जहर उतर जाता है और संक्रमण होता है । वह इस प्रकार है-कार के कांटे से जहर उतर जाता है और नीचे के कांटे से जहर का संक्रमण होता है ||४०||
घर से सर्प भगाने का मंत्र
षट्कोणभवन मध्ये कुरुकुल्लां यो लिखेट् गृहे विद्याम् । तत्र न तिष्ठति नागो लिखिते नागारिबन्धेन ॥। ४१॥
[ संस्कृत टीका ] षट्कोण भवनमध्ये' षट्कोण चक्रमध्ये | 'कुरुकुल्लां' कुरुकुल्लानामदेव्या मन्त्रः । 'यो लिखेद्' यः कोऽपि मन्त्रवादी लिखेत् । वघ ? 'गृहे' गृहवेहल्याम्' स्ववासोत्तराङ्गः । काम् ? 'विद्याम्' कुरुकुल्ला देव्या विद्याम् । 'तत्र' तस्मिन् गृहे । 'न तिष्ठति' न स्थाति । कः ? 'नागः' सर्पः । कस्मिन् कृते सति ? 'लिखिते' सति । केन ? 'नागारिबन्धेन' गरुडबन्धेन ॥४१॥
मन्त्र :- ॐ कुरु कुल्ले ! हूँ फट् ॥
[ हिन्दी टीका ] - घर में प्रवेश करने के द्वार के ऊपर की ओर गरूड ( षट्कोण ) यंत्र बनाकर उसमें गरूड बंध मंत्र लिखे तो उस सर्प घर से भाग जाता है ||४१ ||
मंत्र :- ॐ कुम्ल कुल्ले हूँ फट् । देखे यंत्र चित्र नं. ४४ ॥ शिष्य को विद्या देने का विधान
इदानीं मण्डलोद्धारणमभिधोयते-
चतुरस्त्रं
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मन्डलमतिरमणीयं पञ्चवर्णचूर्णेन प्रथिलिस्य चतुःकरणे सोयभृतान् स्थापयेत् कलशान् ॥४२॥
[ संस्कृत टीका ] - 'चतुरस्त्रं' समचतुरस्त्रम् । 'मण्डलं' वक्ष्यमाणमण्डलम् । 'अतिरमणीयं' अत्यन्त शोभमानम् । 'पञ्चवर्ण चूर्णेन' श्वेतरक्तपीतहरित कृष्णमिति पञ्चवर्णचूर्णेन । 'प्रविलिख्य' प्रकर्षेण लिखित्या | 'चतुः कोरणे' तन्मण्डल चतुःको । 'तोयभूतान्' जलपरिपूर्णान् । स्थापयेत् । कान् ? 'कलशान्' कुम्भान् ॥४२॥ [हिन्दी टीका ] - चार कोने से सहित मरिणय पंचवर्ग चूर्ण से एक मंडल बनावे और मंडल के चारों कोनों में पानी से भरे हुए कलशों की स्थापना करे ||४२ ॥