Book Title: Bhairava Padmavati Kalpa
Author(s): Mallishenacharya, Shantikumar Gangwal
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
( १६२ )
दक्षिणायां दिशि उ श्रजिते स्वाहेति प्रतीच्यां दिशि ॐ अपराजिते स्वाहेति उत्तरस्यां दिशि उ जम्भे स्वाहेत्याग्नेय्यां दिशि, उ मोहे स्वाहेति नेऋत्यां दिशि ॐ स्तम्भे स्वाहेति वायध्यायां दिशि उ स्तम्भिनि स्वातीशान्यां दिशि इत्यष्टदलेषु जयादि जम्भादि देवता विलिखेत् ॥ २४५ ॥ |
[हिन्दी टीका ] - इस अष्टदल कमल के पूर्वादि दिशाओं के दलों में जयादि देवियों के नाम लिखे और विदिशाओं अग्निकोणादियों में जम्भादि देवियों के नाम लिखे और दक्षिणा दिशा के भाग में देवी की स्वर्णमयी पादुका बनावे ||४५||
दलों में नाम लिखने का क्रमः
मः -पूर्ण में ॐ जयायै स्वाहा । आग्नेय में ॐ जम्भायै स्वाहा । दक्षिण में ॐ विजयायै स्वाहा । नैऋत्य में ॐ मोहयै स्वाहा । पश्चिम में ॐ श्रजिताय स्वाहा । वायव्य में ॐ स्तंभायै स्वाहा । उत्तर में ॐ अपराजितायै स्वाहा | इशान्य में ॐ स्तंभिन्यै स्वाहा ।
अभ्यं गन्धतन्दुलकुसुमनिवेद्य प्रदीप धूप फलैः । परमेष्ठिनं च मन्त्रं भैरव पद्मावतीपादी ||४६ ॥
[ संस्कृत टीका ] -' धम्यच्यं' अभिपूज्य । कः ? ' गन्धलन्दुलकुसुम निवेद्य प्रदीप धूप फलैः श्री गन्धाक्षतपुष्पच रुनैवेद्यदीप धूप फलाद्यष्टविषार्चना द्रव्यैः । 'परमेष्ठिनंच मन्त्रम् ' पञ्चपरमेष्ठिमन्त्रम् । 'अभ्यचर्य' पूजयित्वा । 'पूजयेत् भैरव पद्मावती पाहों' भैरव पद्मावती देव्याः पादौ स्वर्ण पादुके श्रपि पूजयेत् ॥ ४६ ॥
[ हिन्दी टीका ] - उसके बाद परमेष्ठी यंत्र मंत्र और पद्मावती देवी के चरणों की जल, चन्दन, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, दीप, धूप और फलों से अर्चन करे ||४६ ॥ नोट :-देवीपूजा यंत्र चित्र नं ४४, पेज नं. १८१ पर देखें । परसमयजन विरक्त शिष्यं जिनसमय देवगुरुभक्तम् । कृतवस्त्रालङ्कारं संस्नातं मण्डलाभिमुखम् ॥४७॥