Book Title: Bhairava Padmavati Kalpa
Author(s): Mallishenacharya, Shantikumar Gangwal
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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पिंडाक्षरों को यंत्र के दलों में और कणिका के मध्य में लिख, बाकी यंत्रोद्धार पहले कहे अनुसार करना ॥५।।।
भावार्थ-जल स्ततंभन के लिये म्ल्य्य को कणिका और यंत्र के आठ दलों में लिख, उसी प्रकार तुला स्तंभन के लिये ब्ल्म्न" सर्प स्तंभन के लिये ह.म्ल्या" लिख और पक्षी स्तंभन के लिये व्य" पिंडाक्षर लिख फिर बाह्य वलय बनाकर प्रत्येक यंत्र में पूर्वोक्त मंत्र लिख और अंतिम वलय में ठ कार लिख। पहले लिख अनुसार ही इन यंत्रों की विधि है, यंत्र चित्र नं. ज. तु. स. प.
१६-२०--२१--२२ ब्रह्मग्लौंकार पुटं टान्तावृतमष्टयन संस्द्धम् । वामं वज्राग्रगतं तदन्तरे रान्तुबीजं च ॥६॥
[संस्कृत टीका]-'ब्रह्म' उकार सम्पुटम् इति बीजद्वयम् । कथम्भूतम् ? टान्तावृतम् । ठकारावृतम् । पुनः कथम्भूतम् ? 'अष्टवरुद्धम्' वाष्टकैः सम्यगद्धम्। 'वामां वज्राग्रगत' उकारो बज्राणां अन स्थितः। 'तवन्तरे' तहज़ानान्तराले 'रान्तबीजं च' रकारस्यान्तो लकारः स एव बीजं रान्तबीजं लं इति । 'चः' समुच्चये ।।
[हिन्दी टीका-ग्लों कार के संपुट में ॐ कार लिख फिर ठ कार से वेष्टित करके, उसको आठ बज्र से वेष्टित करे, वेष्टित किये हुए वच्च के मुख पर ॐ लिख, उसके अन्तराल में लं वीज को लिखे ।।६।।
बार्ताली मन्त्रवता बाह्यऽष्टसु दिक्षु विन्यसेत् कमशः । मलवर यूंकार युतान् क्षमठसहपरान्तलान्ताश्च ॥७॥
[संस्कृत टोका]--वार्तालीमन्त्रवत' वज्राणां बहिः प्रदेशे वार्तालीमन्त्रेण वेष्टितम् । 'बाह' मन्त्रावेष्टन बहिः प्रदेशे । 'अष्टसु दिक्षु' अष्टासु दिशासु । 'विन्यसेत्' विशेषेरग स्थापयेत् । कथम्? 'क्रमशः' फ्रम परिपाटया। 'मलवर कारयुतान्' मश्च लश्च वश्च रश्च यूकारश्च मल वरयू काराः तैयुताः मलवरयू कारयुताःतान् मलवरयू कारयुतान् । 'क्षमठसहपरान्तलान्तान्' क्षश्च भश्च ठश्च सश्च हश्च पश्च लश्च वश्च, 'रान्तो' रकारस्यान्तो लकारः लश्च, 'लान्तो' लकारस्थान्तो धकार: यश्च, क्षमठसह. परान्तलान्ताः तान् । एवं पल्टन" म्रूच्या "ठम्य" स्म्या" हम्ल्या" म्ल्या ल्मल्ल्या क्या" एतानष्ट पिण्डान् । वार्तालीमन्त्रोद्धार :--