Book Title: Bhairava Padmavati Kalpa
Author(s): Mallishenacharya, Shantikumar Gangwal
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti

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Page 190
________________ ( १७६ } विषों के लक्षरण इदानों चतुविधं चिह्नमभिधीयते - पार्थिवदिषेण गुरुता जडता बेहस्य सनिपातत्यम् । लालाकण्ठ निरोधो गलनं वंशस्य तोयविषात् ॥१७॥ [ संस्कृत टीका ] -- 'पार्थिवविषेण' पृथ्वी थिष नाग दष्टस्थ । 'गुरुता' गुरुत्वम् । 'जडता बेहस्य' शरीरस्य जाड्यम् । 'सन्निपातत्वं' सनिपातस्वरूपमिति पार्थिविषचिह्न स्यात् । 'लालाकष्ठनिरोधः' मुखे लालास्त्रवः । 'गलनं दंशस्य' सर्पदष्ट वंशे रक्तक्षररणम् । कस्मात् 'तोय विषात्' प्रम्बुविषात् अम्बुधिवदष्टस्यवंविधं चिह्न स्यात् ॥ १७॥ [ हिन्दी टीका ] - पृथ्वी विष वाले नाग के काटने पर शरीर जडवत् भारी होता है, सन्निपात की जैसी अवस्था हो जाती है। समुद्र जल की जाति के नाग के काटने पर मुख से लार गिरती है और दांत गलने लगते हैं ।। १७ । गण्डोगता हटेरपाटयं भवति वह्निविषदोषात् । विच्छ्रायतास्य शोषणमपि मारुत गरल दोषेण || १८ || [ संस्कृत टिका ] - 'गण्डोद्गमता' दष्टशरीरे गण्डोद्गत्वम् । 'रष्टेरपाटवं' नेत्रयोरपत्यम् 1 ' भवति' स्यात् । कस्मात् ? 'न्हि विष दोषात् ' वन्हिविषनागवष्टस्य पुरुषस्यैवंविधचिह्न ं स्यात् । 'विच्छायता' शरीरे दुश्छवित्वं, 'प्रास्यशोषणमपि वदने निर्दयत्वमपि । केन ? 'मारुतगरलदोषेण' वायुविषनागवष्ट पुरुषस्यैवं चिह्न स्मात् ||१८|| [ हिन्दी टीका ] - अग्नि के समान विष वाले स्थल फूलने लगते हैं । श्रौर नेत्र ज्योति बंद हो जाती है। नाग के काटने पर शरीर में चंचलता होती है और नींद लगता है ||१८|| नाग के काटने पर गण्ड वायु के समान विष वाले उड़ जाती है, मुँह सूखने विषहरण मंत्र इत्यष्टविधनागानां कुलवर्णविष चिह्न व्यक्तयः प्रतिपादिताः ॥ ॐ नमो भगवत्यादिमन्त्रमष्टोत्तरं शतम् । पठित्वा कोशपटहं ताडयेद्दष्ट सनिधी ॥१६॥

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