Book Title: Bhairava Padmavati Kalpa
Author(s): Mallishenacharya, Shantikumar Gangwal
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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( १८६ )
मन्त्रोद्धार :- ॐ ह्रां ह्रीं गरुडाय ठ ठ ।। इति रेखा मन्त्रः ।।
[ हिन्दी टीका ] - गरुडमुद्रा से इस मंत्र का जाप्य करके रेखा खींचे तो उस रेखा का किसी भी काल में, उल्लघन सर्प नहीं कर सकता और वह मरण तुल्य हो जाता है ||३४||
रेखा मंत्र :- ॐ हाँ ह्रीं गरुडाय ठः ठः " खटिका फरिदर्शन विधान
कपिकच्छूरसभावितख टिका प्ररणवादिनील परिजप्त्वा । लेख्यस्योपदेशात् खटिकासर्पः शनेवरे ।।३५।।
[ संस्कृत टीका ] - कपिकच्छूरसभावित खटिका' कण्डुकरीरसेन सप्तवारं भाfear after | 'प्रणवादिनील परिजप्त्वा सा खटिका प्ररणवादि-नील मन्त्रेण समं जया । 'लेख्यस्तया' खटिकथा लेखनीयः । कथम् ? 'उपदेशात्' उपदेश पूर्वेण । कः ? 'खटिकासर्प:' तत्खटिकालिखितसः । कस्मिन् ? 'शतेवर' शनिविने ॥। ३५ ।।
मन्त्रोद्धार :- ॐ नील विष महाविध सर्प संक्रामणि ? स्वाहा । इति विष संक्रामरणमन्त्रः ॥
[ हिन्दी टीका ] - खडिया ( खटिका) को कोंच के रस में सात बार भावना देकर उस पर निम्नोक्त मंत्र से शनिवार को एक सर्प का चित्र बनावे ||३५|| मंत्रोद्धार :- ॐ नील विष महाविष सर्प संक्रामरिण स्वाहा ।
यो हन्यात् तद्वक्त्रं खटिकासर्पो दर्शात नात्र सन्देहः । रवा करतलदशनं मूर्च्छति विषवेदनाकुलितः || ३६ ||
[ संस्कृत टीका ] - 'यो हन्यात् तद्वक्त्रं खटिकासर्पो वशति नात्र संदेह: ' अत्र खटिका सर्प विधाने सन्देहो न कार्यः । 'वा करतल दशनं तत्सर्पदशनदेशं करतले हवा | 'मूर्च्छति' पुरुषो मूर्च्छा प्राप्नोति । कथम्भूतः ? 'विषवेदनाकुलित ' विषजनितवेदनाकुलितः । इति खटिका सर्प कौतुकविधानम् ॥३६॥
उठ मन्त्रेण विर्ष ह कारमध्यगं जप्त्वा
[हिन्दी टीका | -जो कोई उस चित्र सर्प के मुख पर मारता है, उसको वह चित्र काट लेता है । और उस सर्प दंश को देख कर विषवेदना से वह व्यक्ति