Book Title: Bhairava Padmavati Kalpa
Author(s): Mallishenacharya, Shantikumar Gangwal
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
( १७५ ) [संस्कृत टीका]-'अनन्तो वासुकिस्तक्षः' अनन्तनाम नागः, वासुकिर्नाम नागः तक्षको नाम नागः । 'कर्कोटः' कर्कोटको नाम नागः । 'पघसंज्ञकः पद्मनाम नामः । 'महासरोजनामच महा पमनामनागः। 'शङ्खपालः' शङ्खपालो नाम नागः। 'तथा कुलिः' तेन प्रकारेण कुलिको नाम नागः । इत्यष्टविधनागानां नामनि निरूपितानि ॥१४॥
[हिन्दी टीका]-अनन्त, वासुकि, तक्षक, कर्कोट, पद्म, महापद्म, शंखपाल और कुलिक इस प्रकार ये पाठ प्रकार के नागों के नाम हैं ।।१४।।
प्रतः परं तेषां नागानां कुल जाति वर्ण-विष-व्यक्तयः पृथक्पृथगभिधीयन्तेक्षत्रिय कुलसम्भूतौ वासुकिशजी धराविषौ रक्तौ ।। कर्कोटक पद्मावपि शूद्री कृष्णौ च वारुणीयगरौ ॥१५।।
[संस्कृत टीका]-'क्षत्रिय कुल सम्भूतो' क्षत्रियकुल सम्भयौ । को ? वासुकिशडी' वासुकिशङ्खपालनागौ। 'घराविषौ' तो द्वौ पृथ्वीविषान्वितो। 'रक्तौ रक्तवरणौ । 'कर्कोटक पद्मावपि' अपि-पश्चात् कर्कोटपछौ । शूद्रौ' शूद्र फूलोद्भूतौ । 'कृष्णौ' तौ दो कृष्गबणौ । चः समुच्चये । 'वारुणीयगरौ' तो द्वौ अधिविषान्वितो ॥१५॥
[हिन्दी टीका]-वामुकि और शंखपाल नाग क्षत्रिय कुलोत्पन्न, रक्तवर्ण और पृथ्वी विष वाले हैं । करकोटक और पद्म नाग शूद्र कुलोत्पन्न काले रंग के और समुद्र जल के हलके विष वाले होते हैं ।।१५।।
विप्रावनन्त कुलिको वह्निगरी चन्द्रकान्तसङ्काशौ । तक्षक महासरोजौ वैश्यो पीतो मरुद्गरलौ ॥१६॥
[संस्कृत टीका]-'अनन्तकुलिकों' अनन्तकुलिक नाम नागौ। 'विप्रो' विप्रकुलसम्भूतौ । 'वह्निगरौं' प्रग्नि विषान्वितो। 'वैश्यों' वैश्यकुलोद्धवौ । 'पीतो' पीतवरणौ । 'मरुद्गरलो' वायुविषान्वितो। इत्यष्टविधनागानां कुल वर्ण विषव्यक्तयः प्रतिपादिताः । जय विजय नागौ देवकुलोद्भूती प्राशीविषो पृथिव्यां न प्रयतते इत्येतस्मिन्मन्थे न प्रतिपादितौ ॥१६॥
[हिन्दी टीका -अनन्त और कुलिक जाति के नाग ब्राह्मण कुल वाल, स्फटिक के समान रंग वाले और प्राग्निविष चाले हैं। तक्षक और महापय वैश्य कुलोत्पन्न पीले वर्ग के और वायु के विष वाले हैं। जय विजय जाति के नाग देवकूल के प्राशी विष वाले हैं, इनका पृथ्वी पर संचार न होने से इस ग्रंथ में वर्णन नहीं किया है ।।१६।।