Book Title: Bhairava Padmavati Kalpa
Author(s): Mallishenacharya, Shantikumar Gangwal
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti

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Page 186
________________ ( १७२ ) sarat निविषीकरणमभिधीयते : ---- जलभूमिवह्निमारुतगगनं: मंप्लावयद्वयोपेतैः । भवति च विषापहारस्तर्जन्याश्चालनादचिरात् ॥६॥ [ संस्कृत टीका ] - 'जलं' पकारः । 'भूमि' शिकारः । 'बन्हिः' उकारः । 'पथन: ' स्वाकारः । 'गगनं' हाकारः । इति पञ्चबीजाक्षरः । कथम्भूतः ? संप्लावयद्वयोपेतः संप्लावयेति पदद्वयान्वितः । भवति' स्यादेव । कः ? विद्यापहार: विषनिर्विषीकरणम् । कस्मात् ? 'तर्जन्याश्वालनात्' स्ववामकरतर्जन्यश्चालनात् । कथम् ? 'अचिरात्' शीघ्रतः । श्रतः मन्त्रोद्धार :- -पक्षि ॐ स्वाहा संप्लावय संप्लावय । इति विषापहारः ||६|| i [ हिन्दी टीका ] - जल बीज प कार । भूमि बीज क्षि कार । श्रग्नि बीज ॐ कार । पवन बीज स्वाकार। गगन बीज हा कार । इस प्रकार पांच बीजाक्षरों को और आगे संप्लावय-२ ये दो पद सहित बांये हाथ की तर्जनी अंगुली से जल्दी - २ चलाकर मंत्र का जाप करने से जहर उतर जाता है ॥६॥ मंत्रोद्धारः - पक्षि ॐ स्वाहा संप्लावय-संप्लावय ।".. इदानीमन्त्रविषसंक्रम रण कौतुकमभिधीयते- मदग्निवारिधामव्योमपदं संक्रमव्रजद्वितयम् । बालनयानामिया नितरां विषसंक्रमो भवति ॥१०॥ [ संस्कृत टीका - ] 'मवत्' स्वाकारः । 'अग्नि' उकारः । 'वारि' प्रकारा 'धाम' भिकारः । 'व्योम' हाकारः । 'संक्रमव्रज द्वितयं' संक्रम संक्रम व्रज व्रजेति पदद्वयम् । 'चालनयानामिकया' स्ववामकरानामिकायाश्चालमेन । 'नितरां श्रतिशयेन । 'विषसंक्रमो भवति' परं प्रति विषसंक्रमो भवति ॥ १० ॥ मन्त्रोद्वारः - स्वा ॐ पक्षि हा संक्रम संक्रम वज व्रजेति विष संक्रामण मन्त्रः । [ हिन्दी टीका ] - इस मंत्र का बाए हाथ की अनामिका अंगुलि से जाय करे तो विसंक्रमण होता है ॥ १० ॥ १. लिउ स्वाहा स्तंभय स्तंभय निविधकरणं पक्षि ॐ स्वाहा संप्लावय संप्लावय । अयं विषापहार.. मन्त्रः इति पाठः ।

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