Book Title: Bhairava Padmavati Kalpa
Author(s): Mallishenacharya, Shantikumar Gangwal
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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[संस्कृत टीका]-'पावत्याः पुरतः' पद्मावती देव्यग्रतः । 'पोतः पुष्पैः पुरा समभ्यर्य' पीतवर्गप्रसूनः पूर्व सम्यक पूजयित्वा । 'यन्त्रपट' एतल्लिखित यन्त्र पटम् । 'बध्नीयात्' निबध्नीयात् । 'प्रख्याते विख्याते । 'वः' समुच्चये। 'पान्तरे स्तम्भे' अभ्यन्तर स्तम्भे ॥२१॥
[हिन्दी टीका-फिर इस यंत्र को पद्मावती देवी के सामने पीले पुष्पों से पूजन करके इसको एक अत्यन्त ऊँचे प्रसिद्ध स्तंभ में बांध दे ।।२१।।
तं हष्ट्वा दूर तरानश्यन्ति भयेन विलो भूताः। विरचित सेना व्यूहात् सङ्ग्रामेऽशेषरिपुवर्गाः ॥२२॥
[संस्कृत टोका]-'तं दृष्ट्वा' स्तम्भे निबद्ध यन्त्रपटं दृष्ट्वा । 'दूरसरानश्यन्ति' प्रतिदूरादेव 'नश्यन्ति' पलायन्ते । भयेन विह्वलीभूताः' भीत्या विकलीभूताः। कस्मात् ? 'विरचितसेनाव्यूहात विशेषेण रचितो विरचितः, विरचितश्चासौ सेनाव्यूहरच विरचित सेनाव्यूहः तस्मात् । क्य ? 'सङ्नामे' रणभूमौ । के ? 'अशेषरिपुवर्गाः' इतरशत्र समूहाः । नश्यन्तीति संबन्धः ॥२२॥
[हिन्दी टीका]-इस यंत्र को दूर से देखकर युद्ध में सेना का व्यूह बनाये हुए सब शत्रु लोग भय से डरकर भाग जाते हैं ।।२२।।
दिव्य सेना स्तंभन यंत्र चिा नं० २४ देखे ।
इत्युभयभाषाफविशेखर श्री मल्लिषेपसूरिविरचिते भैरवपनावतीकल्पे स्तम्भनयन्त्राधिकारः पञ्चमः परिच्छेदः ॥५।।
श्री उभय भाषा कवि श्री मल्लिषेरणाचार्य विरचित भैरव पद्मावती कल्प का स्तम्भनयंत्राधिकार को हिन्दी भाषा की विजया नाम की टीका समाप्त हुई।
(पांचवा अधिकार समाप्त)