Book Title: Bhairava Padmavati Kalpa
Author(s): Mallishenacharya, Shantikumar Gangwal
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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( १०८ )
[ हिन्दी टीका ] - पहले कहे हुए मंत्र को कांच के बर्तन पर सुगन्धित द्रव्यों से लिखकर रोगी को पिलाने से तुरंत हो दाह ज्वर शांत होता है ||५|| मंत्रोद्वार : - ॐक्ष्म्य" हॅ क्वी देवी हं सः असि आउमा स्वाहा यही मंत्र सूरत की प्रति में इस प्रकार है, ॐ नमो भगवते पार्श्व चंद्राय व्यहँ
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वीँ हंसः प्रति आउसा स्वाहा । बाकी प्रतियों में नमो भगवते पार्श्व चंद्राय, रवी की जगह क्वो लिखा है । हमने संस्कृत प्रति का अनुकरण किया है ||५|| मन्त्रोद्धार :- ॐ क्षम्यहं क्त्री क्ष्वा हंसः श्रसि उसा स्वाहा || दाह ज्वर शांति यंत्र चित्र नं. ३१ देखे |
( ब्लें) क्लैतत्व कूटेन्दवृतं स्वनाम तद्ब्राह्यं भागेऽष्ट दलाउजपत्रम् । पोषु पद्मावरमूल मन्त्रं वेष्टयं तवाकर्षण पल्लवेन ॥६॥
[ संस्कृत टीका ] - 'क्लेतत्व कुठेन्दुवृतम्' 'क्लें' 'क्ले कारं, 'तत्वं' होंकारम् 'कूट' क्षकारम्, 'इन्दुः' ठकारः तैः वृतम् एभिश्चतुर्खोजेरावेष्टितम् । किंसत् ? 'स्वनाम' स्वकीयनाम । 'तद्वाह्यभागे' तद्वीजाक्षरबहिः प्रदेशे । 'अष्टदलाब्ज पत्रम् ' श्रष्ट दल कमल पत्रम् | 'पत्रेषु' तद्दलपत्रेषु 'पद्मावरमल मन्त्रम' पद्मावती देव्या विशिष्टमूल मन्त्रम 'वेष्टयं तद्' तद् यन्त्रं वेष्टनीयम | केन ? ' आकर्षण पल्लवेन' संवौषट् इति पल्लवेन || ६ ||
मन्त्रोद्वार : - उ ह्रीं ह्र हरवली पद्म ! पद्मनि ! नमः ॥
[हिन्दी टीका | - 'ब्ले (क्लें) ह्रीँ क्ष और ठ से अपने नाम को परिवृत
करके उस के बाहर के भाग में प्रष्ट दल कमल बनावे, उस अष्टदल कमल के प्रत्येक दल में पद्मवती देवी का मूल मंत्र लिखें, फिर उसको आकर्षण पल्लव संवौषट से वेष्टित करे || ६ ||
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मंत्रोद्वार : ॐ ह्रीं ह्र हस्ल्को पद्म पद्मकटिनि नमः ।
यन्त्र ततश्चार्द्ध शशि प्रवेष्टयं विलिएय यन्त्रं फलके बटस्य ।
गोरोचनासंयुतकुङ्क, मार्च: साध्यस्य नामारु चन्दनेन ||७||
[ संस्कृत टीका ] - ' यन्त्रम् एतत् कथितयन्त्रम् 'ततः' तस्मालेखनानन्तरम् 'च' समुच्चये 'शशिप्रवेष्टयम् अर्द्धचन्द्र रेखया वेष्टयम् 'विलिख्य' विशेषेण
१. ले इति पाठ: ।