Book Title: Bhairava Padmavati Kalpa
Author(s): Mallishenacharya, Shantikumar Gangwal
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti

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Page 166
________________ { १५२ ) [हिन्दी टीका] -कुमारी कन्या से धतूरे के रस में सबको पिसवाकर, ओले के पानी से, चंद्रोदय होने पर तिलक करने से संसार मोहित होता है ॥३॥ स्त्रीवश्यपान बहिशिखासित गुजागोरम्भानुकोटस्य मलम् । निज पञ्चमलोपेतं चूर्ण वनितां वशीकुरुते ॥४॥ [ संस्कृत टीका ]-बहिशिखा' मयूरशिखा, 'सितगुजा' श्वेतगुञ्जा 'गोरम्भा' प्रसिद्धा । 'भानुकोटकस्य मलं', प्रपत्र कीटकविट् । "निजपञ्चमलोपेतं' स्वकीयपञ्चमलोपेतम् । 'चूर्ण' एतद् द्रव्यान्वितं ताम्बूलचूर्णम् । 'वनिता स्त्रियम् । 'घशी कुरुते' वशी करोति ॥४॥ [हिन्दी टीका]-मयूरशिखा, सफेद गुंजा, गोरखमुंडी (गोभी), आक का पत्ता, कीट का मल और अपने पाचों मलों का चूर्ण, पान के अन्दर खिलाने से स्त्री वशीकरण (मोहित) होती है ।।४।। ___ स्त्रीवश्यगुटिका करवीर भुजङ्गाक्षीनारीदण्डीन्द्रवारुणी । गोबन्धिनो सलज्जानां विधाय वटिका बहूः ।।५।। [संस्कृत टीका]-'करवीर' रक्ताश्वमार जटा, 'भुजङ्गाक्षी' साक्षीजटा, 'जारी' पुगं जारी, दण्डी' ब्रह्मवण्डोजटा, इन्प्र धारुरणी विशाल नटा, 'गोधन्धिनो' प्रध: पुष्पी, प्रियङ्ग रित्येके, 'सलज्जानां समन्ताज्जटान्वितानां एतेषां द्रष्याणां चूरी संपेष्य। 'विधाय मटिका बहूः' बहरपि वटिकाः कृत्वा ॥५॥ [ हिन्दी टीका ] लाल कनेर, भुजङ्गाक्षी, जटा, ब्रह्मदण्डी, इन्द्रायन, गोबन्धनी (गोखुरी) (अधोपुष्पी या प्रियंगु ) लज्जावती के चूर्ण को गोलियां बनावे ।।५।। घटिकाभिः समं क्षिप्त्वा लवणं शुभ भाजने । पक्त्वा स्वभूत्रतो पद्यात् खाऱ्या स्त्रीजन मोहनम् ॥६॥ [संस्कृत टीका]-'वाटिकाभिः समं क्षिप्त्वा' 'लधणम्' समुद्र लवरणम् । व ? 'शुभ भाजने' मनोश भाण्डे । 'पस्वा' पाकं कृत्वा । कथम् ? 'स्वमूत्रतः' निज मूत्रतः । 'बद्यात् खाद्य' अन्नाविषु दद्यात् । 'स्त्रीजनमोहन स्यासे ॥६॥

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