Book Title: Bhairava Padmavati Kalpa
Author(s): Mallishenacharya, Shantikumar Gangwal
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 181
________________ ( १६७ ) दशमः गारुडतन्त्राधिकार परिच्छेदः गारुड विद्या के पाठ प्रग संङ्गग्रहम ङ्गन्यासं रक्षा स्तोभं च वचम्यहं स्तम्भम् । विषनाशनं सचोध खटिकाफरिणदशनदशं च ॥१॥ [ संस्कृत टीका ]-'संग्रह' दष्टस्य संग्रहम् । 'मङ्गन्यासं' दष्ट पुरुषस्य शरीराक्षर विन्यासम् । 'रक्षा' बष्टस्य रक्षाकरणम् । 'स्तोभं च' दष्टावेशकरणं, चः समुच्चये । 'वम्यहं' मल्लिषेरणाचार्यः कथयामि । 'स्तम्भ' वष्टस्य शरीरे विष प्रसरण निरोधः स्तम्भम् । 'विषनाशनं निर्विषीकरणम् । 'सचोय' घोछ न सह वर्तत इति सचोद्य, दष्टपटाच्छादनादि कौतुकम् । खटिकाफरिणदशनदंशं च' खटिकालिखित सर्पदन्तदंशमित्यष्टाङ्ग गारुउमहं वसमीति सम्बन्धः ॥१॥ [ हिन्दी टीका |-मैं महिलषेरणाचार्य सांप ने डस लिया हो उसकी परीक्षा के लिये, ऊपर मंत्र के अक्षरों को लिखने के लिये, रक्षा करने के लिये, दंश के आवेश को रोकने के लिये, शरीर में जहर का चढ़ना रोकने के लिये, जहर उतारने के लिये कपड़े से ढकने के कौतुक तथा लेखनी से लिखे हये सर्प के दांत से दंश देने रूप गारूड अधिकार के आठ अंगों का वर्णन करता हूँ ॥१,। प्रथमस्तावत्संग्राहोऽभिधीयते-- समविषमाक्षर भाषिणि बूते शशि दिनकरौ च वहमानौ । दष्टस्य जीवितव्यं तद्विपरीते मृति बिन्धात् ॥२॥ [संस्कृत टीका]-'समविषमाक्षर भाषिणि दूते शशि दिनकरी च वहमानो' चन्द्रदिवाकरौ स्वरौ प्रवर्तमानौ । 'दष्टस्य जीवितव्यं समाक्षरभाषिणि इत्ते चन्द्र बहमाने, विषमाक्षरभाषिरणी दूते सूर्ये वहमाने दष्टपुरुषस्य संग्रहोऽस्तीति बिन्धात् । 'दृष्टस्य जीवितव्यं तद्विपरीते मृति विन्द्यास' समाक्षर भाषिरिण बूते सूर्ये वहमाने, विषमाक्षरभाषिणी दूते चन्द्र बहमाने इति स्वरवर्णवपरीत्ये वष्टपुरुषस्य संग्रहो न विद्यते इति विन्धात् ॥२॥ [हिन्दी टीका]-यदि दूत चन्द्रस्वर में सम अक्षर कहे तो समझना चाहिये कि जिसको सांप ने काटा है वह व्यक्ति बच जावेगा और प्रश्नकर्ता यदि सूर्यस्वर में विषमाक्षर कहे तो उसकी मृत्यु समझना चाहिये ।।२।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214