Book Title: Bhairava Padmavati Kalpa
Author(s): Mallishenacharya, Shantikumar Gangwal
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text ________________
( १५३ ) [हिन्दी टीका]-उन गोलियों को नमक सहित एक बर्तन में डालकर अपने मूत्र में पकावे । इन गोलियों को भोजन आदि के साथ खिलाने से स्त्री वश में होती है ।।६।।
दश्यचूर्ण मृत भुजग बदन मध्ये लज्जरिका सनिघाय सितगुजाम् । रुद्र जटा सम्मिश्रामाकृष्य दिनत्रयं यावत् ॥७॥
[संस्कृत टोका]-'मृतभुजग बदन मध्ये' पञ्चत्यप्राप्त कृष्ण सर्पास्यमध्ये। 'लज्जरिका' समङ्गामूलम् । 'सन्निधाय' सम्पग्निधाय । "सितगुञ्जा' श्वेतरक्तिकाम् । कि विशिष्टाम् ? 'रुद्रजटासम्मिश्राम्' रुन्द्रजटासंयुक्ताम् । 'प्राकृष्य विनत्रयं यावत् एतन्मूलत्रयं तत्मपस्येि दिनभयं यावत् संस्थाप्य, पश्चात् 'भाष्य' निष्कास्य ॥७॥
[हिन्दी टीका]-मरे हुये काले सांप के मुह में लाजवंती, सफेद गुजा और रूद्रजटा को रखकर इनको तीन दिन बाद निकाले ।।७।।
लालिकायाः कन्दे गोमय लिप्ते परिक्षिपेच्चूर्णम् । परिभाष्य शुनीपयसा स्वमलैः पञ्चाङ्ग सम्भूतः ।।८।।
[संस्कृत टीका]-'लाङ्गलिकायाः कन्दे' कलिहार्याः कन्दं उत्कीयं तदद्वय सम्पुटमध्ये । कथम्भूते ? 'गोमयलिप्ते' गोशकृता परिलिप्य । 'परिक्षिपेच्चरर्णम्' प्राक्कथितौषधत्रयकृतचूर्ण तत्कन्दमध्ये निक्षिपेत् । कि कृत्वा ? 'परिभाव्य' तच्चूर्ण सम्यग्भावयित्वा । केन ? 'शुनीपयसा' कृष्णशुनीवुग्धेन, न केवलं शुनिबुग्धेन भाग्यम् । 'स्थमलैः पञ्चाङ्ग सम्भूतः' स्वकीयपञ्चाङ्ग जनित मलैरपि भावयित्वा ॥८॥
[ हिन्दी टीका ]-उस चूर्ण को काली कुतिया के दूध और अपने पांचों मलों में भावित करके गोबर से लिपे हुये कलिहारी के सम्पुट कन्द में डाले ।।८।।
पंचाङ्गमल नेत्रश्रोत्रमलं शुक्र दन्तजिह्वामलं तथा। वश्यकर्मरिण मन्त्रः पञ्चाङ्गमलमुच्यते ।।६।।
[संस्कृत टोका]-'नेत्रं' लोचनम्, 'श्रोत्र' श्रवणम्, तयोर्मलम् । 'शुक्त' बीजम् । 'वन्तः' रखनः, 'जिह्वा रसना 'मलं' अनयोर्मलम् । 'तथा' तेन प्रकारेण । १. क्षेपक : श्लोक :।
Loading... Page Navigation 1 ... 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214