Book Title: Bhairava Padmavati Kalpa
Author(s): Mallishenacharya, Shantikumar Gangwal
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
( १२८ ) 'ज्वरयति' साध्यपुरुषं ज्वरेण गृह्णाति । कस्मात् ? 'मन्त्रस्मरणात्' उँ चण्डेश्वर ! इत्यादिमन्त्रचिन्तनात् । कथम् ? 'सप्ताहात्' सप्तदिनमध्यतः। केन ? 'अस्थिमथनेन' पुरुषास्थिकीलकमथनेन ।।३२॥३३॥
मन्त्रोद्धारः-उँ चण्डेश्वर ! चण्ड कुठारेण अमुकं ज्वरेण हो गुल्ल गृह्ण मारय मारय हूं फट घे घे ।
[हिन्दी टीका]-ब्राह्मण के शिर के केश की रस्सी बनाकर, उस रस्सी को मनुष्य की खोपडी पर लपेटकर साध्य पुरुष के शरीर से निकला हुए मल, शिर के बाल, शरीर का मल, विष्टा, नाखून, पांव के नीचे की धूल को लेकर, मनुष्य के हड्डी का चूर्ण करके उस मनुष्य की खोपडी में डाले और मंत्र का जाप्य करे और मनुष्य की हड्डी से उपरोक्त पदार्थों को जो खोपड़ी में हैं उनको चूर्ण करे यानी रगडे, तो जैसे-जैसे उपरोक्त पदार्थों का विशेष चूर्ण होता है वैसे-वैसे शत्रु को एक सप्ताह के भीतर ही ज्वर हो जाता है ।।३२।।३३।।
मन्त्रोद्धार :-ॐ (नमो) चण्डेश्वर चण्ड कुठारेगा अमुक ज्वरेण (उँ') ह्री गृल २ मारय २ हूँ फट् घे घे ।
चण्डेश्वराय होमान्तं सञ्जपेद् विनयाविना । सहस्त्रदशकं मन्त्री पूर्वमारुगपुष्पकः ॥३४॥
[संस्कृत टोका]-'चण्डेश्वराय चण्डेश्वरायेति पदम् । 'हामान्तम्' स्थाहाशब्दान्तम् । 'सञ्जपेत्' सम्यग्जपेत् । कथम् ? "विनयादिना' उँकारपूर्वेण । 'सहस्त्र दशक' दशसहस्त्रम् । कोऽसौ ? 'मन्त्री' मन्त्रवादी । कथम् ? 'पूर्वम्' पूर्वसेवायाम् । कैः "अरुणपुष्पकः' रक्तकरवीरपुष्पः ॥३४॥
मन्त्रोद्धार :-उँ चण्डेश्वराय स्वाहा ।। जाप्य सहस्त्रवश (१०,०००)
[हिन्दी टीका]-उपरोक्त विधि के पहले साधक को लाल कनेर के फूलों से १०,००० (दश हजार) जाप्य कर लेना चाहिये ।।३४।।
मंत्रोद्धार :-ॐ चण्डेश्वराय स्वाहाः । टान्त वकार प्रणवनजान्ताद्धं शशिप्रयेष्टितं नाम । शीतोष्ण ज्वरहरणं स्यादुष्णहिमाम्बुनिक्षिप्तम् ॥३५॥
[संस्कृत टीका]-'टान्तवकार' टान्तः ठकारः । वकारः-व इत्यक्षरम् । 'प्रणयनम्' उकारम् । 'जान्तो' भकारः । 'प्रद्धं शशिप्रवेष्टितम्' अर्द्धचन्द्राकाररेखावेष्टितं