Book Title: Bhairava Padmavati Kalpa
Author(s): Mallishenacharya, Shantikumar Gangwal
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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{ १०६ ) सप्तमो वशिकरणयन्त्र परिच्छेदः हंसावृताभिधानं लयरयषष्ठस्वरान्वितं कूटम् । बिन्दुयुतं स्वरपरिवृतमष्ट दलाम्भोज मध्यगतम् ।।१॥
[संस्कृत टीका]-'हंसावृतम्' हंस इति पदेनावृतं-वेष्टितम् । किं तत् ? 'अभिधानम् देवदत्तनाम । 'लवरयषष्ठस्वरान्वितम्' लश्च वश्च रश्च यश्च षष्ठस्वरश्च ककारः एतैरन्वितं युक्तम् । कि तत् ? 'कुटम् क्षकारम् । पुनः कथम्भूतम् ? 'बिन्दुयुतम् अनुस्वार संयुक्तम्, एवं क्षम्य इति पिण्डं हंसपदाद बहिर्देयम् । पुनरपि कथम्भूतम ? 'स्वर परिवृतम्' पिण्डाद् बहिः स्वररावेष्टितम् । पुनः कथम्भूतम् ? 'अष्टदलाम्भोजमध्यगतम्' अष्ठदलकमलमध्ये स्थितम ॥१॥
[हिन्दी टीका]-हंसः शब्द के मध्य में देवदत्त लिखकर उसके ऊपर क्षम्ल्यू लिसो, उसके ऊपर एक वलय में स्वर लिलो, फिर अष्टदल कमल बनावे ।।१।।
तेजो है सोम सुधा हंसः स्वाहेति दिग्दलेषु लिखेत् । प्राग्नेय्यादिदलेव्यपि पिण्डं यत् करिणकालिखितम ॥२॥
[संस्कृत टीका]-'तेजो है सोम सुघा हंसः स्वाहा' तेज:-उँकारः, 'है हमिति अक्षरं, सोमः क्वों कारः, सुधा क्ष्वीकारः, "हंसः' हंस इति पदम् 'स्वाहा' स्वाहा इति पदम् । एवं उँ है क्वी क्ष्वो हंसः स्वाहा इत्येवं विशिष्टमन्तां 'दिग्दलेषु' प्राच्यादिषु चतुः पत्रेषु लिखेत । 'प्राग्नेय्यादिवलेष्वपि' पश्चात प्राग्नेय्यादि विदिग्गतचतुर्दलेष 'पिण्डं यत, करिणकालिखितम् ' यत कणिकाभ्ययन्तरे लिखितं मल्टन, इति पिण्डं विदिक्पशेषु लिखेत ॥२॥
__ [हिन्दी टीका -उस अष्टदल कमल के पूर्वादि चारों दिशाओं में ॐ हूँ क्यों (वी) क्ष्वी हंसः स्वाहा लिखे और चारों विदिशाओं में भव्य पिण्डाक्षर के को लिला देवे ।।२।।
नोट :-मूल संस्कृत पाठ में और अहमदाबाद से प्रकाशित पद्ममावती उपासना में क्वी है और हस्तलिखित संस्कृत पाठ में ॐ ग्रह हो ६वीं हं सः स्वाहा, लिखा हुआ है । इसी प्रति के यंत्र में ॐ ह्रीं इवीं श्वी हसः स्वाहा लिखा है, सूरत की कापड़िया की प्रति में ॐ अहं इवीं क्ष्वों हंस स्वाहा है।
लेकिन मेरा मत ऐसा है कि क्ली की जगह इवी ही होना चाहिये ।।२।।