Book Title: Bhairava Padmavati Kalpa
Author(s): Mallishenacharya, Shantikumar Gangwal
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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( १०१ ) मङ्क शं बीजम्' कोष्ठानेषु तवन्तरेषु च निवेशित को कारम् । 'बलय वेष्टनम् 'पद्मावत्याः' , पद्मावती देव्याः 'मन्लोरण' वक्ष्यमारणमन्त्रोण 'करोतु' कुर्यात् 'तद्वाह्य' तन्मण्डलबाह्म।
वलयमन्त्रोद्धार :-उँ ह्रीं ह्रहस्थली पन ! पद्मकटिनि ! अमुकां मम वश्याकृष्टि कुरु कुरु संबोषट् ॥१४॥१५॥
[हिन्दी टीका]-हाथ के तलवों में म्यू" कार को, बाको हाथ-पांव की अंगुलियों में, सन्धि शाखाओं में रकार को लिखे, उसके ऊपर तीन अग्निमंडल बनावे, यह अग्निमंडल उपरोक्त पुलिका पर बना देवे उस अग्निमडल के पुट के नौ कोठों में ह्रीं तथा कोठों के ऊपर को बीज लिखे, उसके ऊपर पद्मावती मंत्र को लिखे और यंत्र को ह्रीं कार से तीन घेरा डालकर वेष्टित कर दे ।
वलय मंत्र :-ॐ ह्री ह ह्रक्ली पद्मपद्य कटिनि अमुकां मम वश्यावृष्टि कुरु २ संवौषट् ।।१४।।१५।।
प्रङ्क शरोधं कुर्यात् तद्बाह्य मायया त्रिधा वेष्टयम् । यावकमलयजचन्दन काश्मीराय रिवं लिखेद् यन्त्रम् ॥१६॥
[संस्कृत टीका]-'अङ्क शरोधं कुर्यात्' क्रोकाररुद्ध कुर्यात् । क्य? 'तब्बाह्य' तन्मन्त्रवलय वहिः प्रदेशे 'मायया' ह्रींकारेण 'त्रिधा वेश्यम्' त्रिप्रकारेण वेष्टय । 'पावक' अलक्तकम्, 'मलयज' श्रीगन्धम् 'चन्दनम् रक्तचन्दनम् 'काश्मीरम्' कुङ्क मम्, इत्यादि सुगन्ध द्रव्यैः 'इदं लिखेद् यन्त्रम्' एतत् कथितयंत्रां लिखेत् ॥१६॥
[हिन्दी टीका]-क्रो कार से रोध करके, उसके बाहर माया बीज ह्रीं कार से तीन बार बेष्टित कर दे । इस यंत्र को अलक्तक, सफेद चंदन, लाल चंदन, केसर आदि द्रव्यों से लिखे ।।१६।।।
वस्त्रो रजस्वलायाः खदिराङ्गारेण तापयेद् धोमान् । कुरुतेऽभिलषित१ वनिता कृष्टि सप्ताह मध्येन ॥१॥
[संस्कृत टीका]-'वस्तो रजस्वलायाः' 'धीमान' बुद्धिमान् । अभिलषित यनिताकृष्टिम्' अभिप्रेताङ्गनाकष्टिम्' 'कुरुते' कुर्यात् । कथम् ? 'सप्ताहमध्येन' सप्तदिनाम्यन्तरतः ॥१७॥
[हिन्दी टीका]-मंत्रवादि इस यंत्र को रजस्वला के कपड़े पर लिखे तो सात दिन में अथवा उसके अंदर ही स्त्री आकर्षित हो जाती है ।।१७।। . कुरुतेऽभिलिखित इति व पाठः ।