Book Title: Bhairava Padmavati Kalpa
Author(s): Mallishenacharya, Shantikumar Gangwal
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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( ३२ ) दिशि । ॐ वं वरुणाय नमः इति पश्चिमायां दिशि । ॐ यं वायवे नमः इति वायव्यां दिशि ॐ सं कुबेराय नमः इत्युत्तरस्यां दिशि । ॐ हं ईशानाय नमः इति ऐशान्यां दिशि । उ ह्रीं श्रधच्छदनाय नमः इत्यधः, ॐ ह्रीं ऊर्ध्वच्छ्दनाय नमः इत्यूवें लिखेत्, एवं दशदिक्पाल स्थापनक्रमः ॥१६॥
[हिन्दी टीका ] - जिसके प्रणव मंत्र (ॐ) आदि में और अन्त में 'नमः' इस प्रकार के अष्टदिक्पाल अनुस्वार सहित ल, र, श, ष, वय, स और ह को लिखे। फिर साथ में ॐ ह्रीं प्रधच्छदनाय नमः तथा ॐ ह्रीँ उर्ध्वच्छदनाय नमः भी लिखे ।
स्थापना क्रम इस प्रकार
ॐ ह्रीँ लं इन्द्राय नमः, पूर्व में, ॐ ह्रीं रं अग्नेय नमः, प्राग्नेय कोण में । ॐ ह्रीं शं यमाय नमः, दक्षिण में, ॐ ह्रीं षं नैऋत्याय नमः, नैकत्य दिशा में ! ॐ ह्रीं वं वरुणाय नमः, पश्चिम में, ॐ ह्रीँ यं वायव्ये नमः, वायवरयदिशा में । ॐ ह्रीं सं कुवेराय नमः, उत्तर में, ॐ ह्रीं हूं ईशानाय नमः, ईशान दिशा में ॐ ह्रीं प्रच्छदनाय नमः, नीचे की दिशा में । ॐ ह्रीं ऊर्ध्वच्छदनाय नमः, ऊपर की दिशा में लिखे ।
इस प्रकार दश लोकपालों के स्थापना का क्रम जानना चाहिये ||१६||
दिक्षु विविक्षु कभशो नयादि-जम्भादिदेवता विलिखेत् । नमोऽन्तगा मध्यरेखान्ते ॥ १७ ॥
प्रणवत्रिमूतिपूर्वा
[ संस्कृत टीका ]- 'विक्षु विविक्षु' दिशासु विदिशासु, 'क्रमश:' दिशाविविशाक्रमेण 'जयादिजम्भादि देवता:' चतुविशि जयादिदेवताः चतुविदिक्षु च जम्भादिदेवताः, कथम्भूता 'प्रणवत्रिमूर्तिपूर्वाः ॐ ह्रीं पूर्वाः पुनरपि किम्भूताः ? ' नमोऽन्तगाः' नमः शब्दावसानाः, वय ? 'मध्य रेखान्ते' प्राग्लिखित मध्य रेखान्ते विलिखेत् ॥ १७ ॥
[हिन्दी टीका ] उसके बाद माध्य की रेखाओं में और दिशा व विदिशाओं में क्रम से ॐ कार और ह्रीँ कार सहित नमः है जिसके अंत में ऐसी जयादि और जम्भादि देवियों के नाम लिखे ॥ १७ ॥
५ वं वं इति ख पाठः ६ यं यं इति पाठः ७ सं सं इति पाठ: हं इति पाठः ।