Book Title: Bhairava Padmavati Kalpa
Author(s): Mallishenacharya, Shantikumar Gangwal
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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{ ३० । मंत्र जाप्य करने के लिये पल्लवादि विधान का कोष्टक
स्तम्भन कर्म मारग कर्म विद्वेषरण कर्म उच्चाटन कर्म पूर्वाभिमुख
उत्तर पूर्व के मध्य पूर्व दक्षिण मध्य पश्चिम उत्तर मध्य ईशान दिक आग्नेय दिक
वायव्य दिक पूर्वान्ह काल सन्ध्या काल मध्यान्ह काल अपरान्ह काल शंख मुद्रा वज्र मुद्रा
प्रवाल मुद्रा प्रवाल मुद्रा वज्रासन भद्रासन कुकुटासन
कुकुटासन ठः ठः पल्लव घे घे पल्लव हूँ पल्लव
फट् पल्लव पीत वस्त्र कृष्ण वस्त्र धूम्र वस्त्र
धूम्न वस्त्र पीत पुष्प कृष्ण पुष्प धूम्र पुष्प
धूम पुष्प पीत वर्ण कृष्ण वर्ण धूम्र वर्ण
धूम्न वर्ण कुम्भक योग रेचक योग रेचक योग
रेचक योग विदर्भाक्षर मध्य रोधन प्रादि मध्य पल्लवाँत नाम पल्लवान्त नाम नाम
नाम स्वण मरिग
पुत्र जीवा मरिग पुत्र जीवा मरिण पुत्र जीवा मरिण कनिष्ठका तर्जन्यंगुली तर्जन्यंगली
तर्जन्यंगुली दक्षिरण हस्त दक्षिरण हस्त दक्षिण हस्त दक्षिण हस्त दक्षिण वायु दक्षिण वायु दक्षिण वायु
दक्षिण वायु वसन्त ऋतु शिशिर ऋतु ग्रीष्म ऋतु
प्रावृट् ऋतु पृथ्वो मण्डल वायु मण्डल
वायु मण्डल
वायु मण्डल पूर्वान्ह काल संध्या काल मध्यान्ह काल अपरान्ह काल
[हिन्दी टीका]--ॐ ह्रीं सहित पूर्व द्वार पर धरणेन्द्राय नमः लिखे, इसो प्रकार दक्षिण द्वार पर प्रणव 'ॐ' और माया बीज 'ही' कार सहित अधोच्छदनाय नमः फिर पश्चिम दिशा के द्वार पर भी ॐ ह्रीं सहित उद्धं च्छोदनाय नम: लिखे, प्रणव और माया बीज सहित पद्मोच्छदनाय नम : उत्तर दिशा के द्वार पर लिखे । याने पूर्व में ॐ ह्रीं धरणेन्द्रायनमः दक्षिण में ॐ ह्रीं अधोच्छदनार नमः पश्चिम में ॐ ह्रीं पद्धच्छिदनाय नमः उत्तर में ॐ ह्रीं पद्मोच्छदनाय नमः इन मंत्रों को क्रमशः प्रत्येक दिशा के द्वार पर लिखे ।।१४।।