Book Title: Bhairava Padmavati Kalpa
Author(s): Mallishenacharya, Shantikumar Gangwal
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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( ४५ )
एतचिन्तामणिनाम यन्त्रं यः पूजयेद्, सौ पुमान् मुक्त्यङ्गनाप्रियो भवति । 'भुवनपि' लोकोऽपि । 'वशं जायते' वशीभवति ॥
इत्युभयभाषाकदिशेखर श्री मल्लिषेण सूरिविरचिते
भैरव पद्मावती कल्पे देव्याराधनविधिर्नाम
तृतीय. परिच्छेदः ||
[ हिन्दी टीका | -विन्दु और रेफसे सहित हकार यानी हैं बीज को लिखकर उसके बाहर आठ पांखुड़ी का कमल बनावे उस कमल के चारों तरफ से चारों दिशाओं के दलों में ऐं श्रीं ह्रीं और क्ली को लिखे, फिर विदिशात्रों के दलों में क्रीं ह्रौं ब्लें को लिखकर उस यंत्र के बाहर के भाग को हीँ कार से वेप्टिल करे, फिर पूर्वादि चारों दिशाओं में ॐ नमोऽहं ऐं श्रीं ह्रीं क्लीं स्वाहा, मंत्र से वेष्टित करे । इस प्रकार चिन्तामरिण यंत्र की जो कोई पूजन करता है उस मनुष्य के वश में संपू लोक रहता है और मोक्षलक्ष्मी भी वश में रहती है | यंत्रचित्र नं. ५
ओर
इस प्रकार दोनों भाषा के कवि शेखर श्री मल्लिषेण सूरिविरचित भैरव पद्मावती कल्प में देवी आराधनाविधि की हिन्दी विजया टीका समाप्त ।
मुक्तिमिद्धसि चेतात विषयान्विषत्त्यज । क्षमार्जवदया - शौचं सत्यं पीयूषवति ||
अर्थ :- हे भाई! यदि मुक्ति चाहते हो तो विषयों को विष के समान छोड़ दो। और क्षमा, सरलता, दया, पवित्रता और सत्य को अमृत के समान पान करो ।