Book Title: Avashyaksutra Niryuktirev Curni Part_2
Author(s): Haribhadrasuri, Gyansagarsuri, Bhadrabahuswami,
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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आवश्यक- यन्ति, तावत्तिष्ठन्ति यावद् मुरवः स्तुतिग्रहणं कुर्वन्ति, समाप्तायां प्रथमस्तुतौ वर्द्धमानास्तिस्रः स्तुतीः पठन्ति, एवं देवसिकं रात्रिकनियुक्तरव- गतं, रात्रिके प्रथमं चारित्रशुद्ध्यर्थ कायोत्सर्ग कुर्वन्ति, श्रुतज्ञानविशुद्ध्यर्थ श्रुतस्तवं पठन्ति, कायोत्सर्गे प्रादोषिकमतिचारं पाक्षिकाचूर्णिः। || चिन्तयन्ति ।। १५३८ । आह-किमर्थमाद्यकायोत्सर्ग एव न चिन्तयन्ति ?, उच्यते
| दिप्रतिक्र॥ २२८॥
निद्दामत्तो न सरइ अइयारं माय घट्टणंऽणोऽन्नं । किइअकरणदोसा वा गोसाई तिन्नि उस्सग्गा॥१५३९ ॥ मणविधिः भा निद्दामचो-निद्राभिभूतो न स्मरति सुष्टु अतिचारं, मा घट्टणं योऽन्नं अंधयारे बंदंतयाण, किइअकरणदोसा वा, अंधयारे पनि गा.
अदंसणाओ मंदसद्धा न बंदति, एएण कारणेग गोसे-पच्चूसे आइए तिनि काउस्सग्गा भवन्ति, न धुण पाओसिए जहा एकोत्ति ॥ १५३९ ॥
१५४२ एत्थ पढमो चरित्ते दंसणसुद्धीए बीयओ होइ।सुयनाणस्स य ततिओ नवरं चिंतंति तत्थ इमं ॥१५४०॥
तइएनिसाइयारंचिंतइ चरमंमि किं तवं काहं छम्मासा एगदिणाइहाणिजा पोरिसि नमो वा ।१५४१। न यावत् पौरुषी नमस्कारसहितं वा ॥ १५४१॥ पाक्षिकादिविधिः स्वयं ज्ञेयः, क्षामणेवाचार्यो यदभिवचे तदाहअहमवि भे खामेमी तुब्भेहिं समं अहं च वंदामि।आयरियसंतियं नित्थारगाउ गुरुणो अवयणाई।१५४२।।
अहमवि खामेमि तुम्मेहि समं, अहमवि वंदामि चेहआई, आयरिअसंति, नित्थारगपारगा होह, गुरोरेतानि वचनानि IN२२८॥
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