Book Title: Avashyaksutra Niryuktirev Curni Part_2
Author(s): Haribhadrasuri, Gyansagarsuri, Bhadrabahuswami, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 286
________________ आवश्यक निर्युके रखचूर्णिः । ।। २३४ ।। Jain Education Int निष्कूटमशठं, सविशेषं समबलादन्यस्मात् सकाशात् || १५५५ ॥ वयो बलं चाधिकृत्य कायोत्सर्गकरण विधिमाह - तरुणो बलवं तरुणो अ दुब्बलो थेरओ बलसमिद्धो । थेरो अबलो चउसुवि भंगेसु जहाबलं ठाई ॥१५५६ ॥ तरुणो बलवान् १ तरुणच दुर्बलः २ स्थविरो बलसमृद्धः ३ स्थविरो दुर्बल: ४, चतुर्ष्वपि भङ्गकेषु यथाबलं तिष्ठति बलानुरूपमित्यर्थः ।। १५५६ ।। गतमशठद्वारं, शठद्वारे गाथेयं पयलाइ पडिपुच्छइ कंटयवियारपासवणधम्मे । नियडी गेलन्नं वा करेइ कूडं हवइ एयं ॥ १५५७ ॥ कायोत्सर्गकरणवेलायां मायया प्रचलायति निद्रां गच्छति, प्रतिपृच्छति सूत्रमर्थं वा, कण्टकमपनयति, 'वियार 'ति पुरीषोत्सर्गाय याति, प्रस्रवणं व्युत्सृजति, धर्मं कथयति, निकृत्या - मायया ग्लानत्वं वा करोति, कूटं भवत्येतदनुष्ठानं ।। १५५७ ॥ विधिद्वारं--- ठतिय गुरुणो गुरुणा उस्तारियंमि पारेंति । ठायंति सविसेसं तरुणा उ अनूणविरिया उ ॥ १५५८ ॥ रंगुल मुहपत्ती उज्जूए डब्बहत्थ रयहरणं । वोसट्टचत्तदेहो काउस्सग्गं करिज्जाहि ॥ १५५९ ॥ चत्वार्यकुलानि पादयोरन्तरं कार्य, मुखपोतिका दक्षिणहस्तेन ग्राह्या, वामहस्ते रजोहरणं कार्य, एतेन विधिना व्युत्सृष्टत्यक्तदेहः कायोत्सर्ग कुर्यात् ।। १५५९ ।। दोषद्वारमाह For Private & Personal Use Only कायोत्सर्गे शठ विधि द्वारे नि०गा० १५५६ १५५९ ॥॥ २३४ ॥ www.jainelibrary.org

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