Book Title: Avashyakaniryuktidipika Part_3 Author(s): Manekyashekharsuri Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala Surat View full book textPage 9
________________ तथा बीजी वि. सं. १५६४मां लखाएली मळी आवी. तेनी साथे त्रीजा भागनी प्रेस कोपी मेळवीने बनती विशेष शुद्धि करीने PI आ त्रीजो भाग छपाववामां आव्यो छे. बे प्रतिओ पण अतिशुद्ध न हती छतां पण तेमाथी केटलुक अगत्यनुं सुधारवा लायक मळी गयु. आ रीते त्रणे भागो शुद्ध छपाववा माटे बनता प्रयासो करवामां आव्या छे. छतां प्रतिओनी अशुद्धताने योगे, अर्थदृष्टिए पाठनी | त्रुटिना योगे तथा छद्मस्थताना योगे मारी समजफेरना कारणे जे भूल रही जवा पामी होय अथवा प्रेसदोषथी तथा प्रूफ सुधारवामां| पण अनुपयोगी जे कई भूल रही जवा पामी होय तेने विद्वान् वांचको सुधारी लेशे एवी आशा छे. ___ सदरहु ग्रन्थनी प्रतिओ पूरी पाडनार संस्थाओने तथा साहित्यप्रेमी पूज्य मुनिराज श्रीपुण्यविजयजी महाराजने तथा त्रीजा भागना प्रफो तपासवामां मने अपूर्व सहाय आपनार मारा लघुगुरुबन्धु पं. श्रीकान्तिविजयजी गणिवरने याद कर्या वगर रही | शकाय तेम नथी. एज शुभेच्छा. जैन उपाश्रय, लींच. ) लि. संशोधक | वि. सं. २००५ आसो सुद २ । मानविजय T For Private & Personal Use Only Jain Education Internat ww.jainelibrary.orgPage Navigation
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