Book Title: Avashyakaniryuktidipika Part_3
Author(s): Manekyashekharsuri
Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala Surat

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Page 8
________________ आवश्यक निर्युक्ति दीपिका । ॥ ४ ॥ Jain Education Inter दीपिका नवतश्व विचारणा एम छ प्रन्थो रचेल होवानुं जणावेल छे. ज्यारे श्रीजैन श्वेताम्बर कोन्फरन्स तरफथी छपायेल श्रीजैनमन्थावलीमा (१) श्री आवश्यक नियुक्ति दीपिका ( २ ) श्रीपिण्डनिर्युक्ति दीपिका (३) श्रीदशवैकालिक नियुक्ति दीपिका अने (४) श्रीओधनिर्युक्ति दीपिका एम चार ज प्रन्थो सदरहु ग्रन्थकारे रचेला होवानुं जणाववामां आवेल छे. बाकीना बे उपलब्ध यता नथी. संभव छे के अद्यावधि अप्रसिद्धावस्थामा रहेल भंडारोमां ते वे प्रन्थो होय अगर विच्छेद पण पाम्या होय. आ सतिए प्रन्थकारना संबन्धमां जेटलुं साहित्य मळी शक्युं तेटलं उपर मुजब जणाववमां आव्युं छे. उपर ज़णच्या मुजब सदरहु ग्रन्थना संशोधन कार्यमां प्रथम बे ज प्रतिओ प्राप्त थयेली अने ते उपरथी ज प्रेस कोपी तैयार करवामां आंवेली. बन्ने प्रतिओ जोईये तेवी शुद्ध न हती, बन्ने प्रतिओमां पण परस्पर पाठफेर आवता हता छतां पण बन्नेनो समन्वय करीने शक्यता प्रमाणे प्रेस कोपी शुद्ध करीने ग्रन्थ छपाववामां आव्यो छे. तोपण केटलेक ठेकाणे अर्थदृष्टिए त्रुटिओ रहेली छे, परंतु निरुपाये ते एमने एम ज राखीने वे भागो बहार पाडवामां आव्या. त्यार पछी त्रीजा भागनुं कार्य अनिवार्य संजोगोमां बाकी रही गयुं. तेटलामां लडाइ शरु थई, पेपर उपर कन्ट्रोल आव्यो, कागळ मळवानी मुश्कीलता थई, मोंघवारी पण वधी अने छपामना चार्ज पण घणा ज बघता गया. आवा कारणोना योगे समय पलटाय अने सोंघवारी थाय एटले बाकीनुं काम पुरुं करीए ए आशा छ सात वर्ष नीकळी गया. छेवटे गइ साल मास्तर हीरालालनो आ काम पूर्ण करी आपणा माटे आग्रह थवाथी आ कार्य पूर्ण करवा चालु सालमां शरु कर्यु. ते वखते मारा लघुगुरुबन्धु पंन्यास श्रीकान्तिविजयजी गणिवर मारफत साहित्यप्रेमी विद्वद्वर्य पूज्य श्री पुण्यविजयजी महाराज पासेथी पूज्य श्रीहंसविजयजी महाराजना शास्त्रसंग्रहमांथी वे प्रतिओ एक वि.सं. १५५० मां लखाएली For Private & Personal Use Only प्रस्तावना ॥ ४ ॥ www.jainelibrary.org

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