Book Title: Avashyakaniryuktidipika Part_3 Author(s): Manekyashekharsuri Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala Surat View full book textPage 6
________________ आवश्यक निर्युक्ति दीपिका । ॥ ३ ॥ Jain Education Internati आ ते प्रेस कोपी तैयार थया पछी छपाववा माटे द्रव्यनी जे सहाय जोईए ते पूज्य श्रीतिलकविजयजी महाराजे अवरनवर उपदेशद्वारा भाविक श्रावको पासेथी अपाववानुं स्वीकार्य अने आ ग्रन्थ छपाववा माटे प्रेस साथे गोठवण करवी प्रूफो शोधवा वगेरेनुं बाकीनुं तमाम कार्य में स्वीकार्य. आम आ प्रन्थ छपाववा माटे परमोपकारी पूज्यपाद आचार्यदेवनी प्रेरणाथी अने अमारा बन्ना सहयोगथी आ श्रीआवश्यक निर्युक्ति दीपिका नामनो ग्रन्थ ऋण विभागमां संपूर्ण बहार पाडी शकायो छे. स्वर्गीय पू. आचार्यदेव सकलागमरहस्यवेदी श्रीमद् विजयदानसूरीश्वरजी महाराजश्रीना पोताना उपरना अनहद उपकारथी प्रेराइने मास्तर हीरालाल रणछोडभाईए एओश्रीना पुनित नामथी अंकित ग्रन्थमाला वि. सं. १९९४ मां शरु करी हती. अने केटलाक ग्रन्थो ते संस्था तरफथी बहार पण पडी चूक्या हता. बीजा पण अपूर्व ग्रन्थो आ संस्था द्वारा बहार पडे तो सारं एम मास्तर हीरालालनी इच्छा होवाथी तेमणे अमोने ते कार्य माटे विनंति करवाथी आ प्रन्थ पण सदरहु ग्रन्थमाला के जेनी साथै अमारा परमपूज्य परमगुरुदेव स्वर्गीय आचार्यदेवनुं नाम जोडवामां आवेल छे ते ग्रन्थमालाना १६-२९ अने ४२ मा ग्रन्थांक तरीके सदर ग्रंथना त्रण विभागो बहार पाडवामां आवेल छे. सदर ग्रन्थमा कर्ता ग्रन्थनी प्रशस्तिमां जणाव्या मुजब अंचलगच्छमां थयेल श्रीमहेन्द्रप्रभसूरिजीना पट्टधर श्रीमेरुतुंगसूरिजीना पट्टधर श्रीमाणिक्यशेखरसूरि छे. तेमनुं आखुं जीवन तपास करवा छतां पण उपलब्ध थई शक्युं नथी. तेमज तेओ क्या था ? क्यों जम्म्या ? क्यारे दीक्षा लीघी ? ए बधी विशिष्ट हकीकतो पण मळी शकी नथी छतां, पण जे कई तेमना संबंधां प्राप्त थयुं छे ते नीचे मुजब आपवामां आवे छे For Private & Personal Use Only प्रस्तावना ॥ ३ ॥ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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