Book Title: Avashyakaniryuktidipika Part_3 Author(s): Manekyashekharsuri Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala Surat View full book textPage 5
________________ प्रस्तावना tee RECRUCIAL वि. सं. १९९४ मा सञ्चारित्रचूडामणि सिद्धान्तमहोदधि आचार्य श्रीमद विजयप्रेममरीश्वरजी महाराजा पोताना बहोळा शिष्य-प्रशिष्य समुदाय साथे मुंबई लालबाग जैन उपाश्रयमां चातुर्मास बिराजमान हता. ते वखते पोतानी देखरेख नीचे छेदसूत्र श्रीनिशीथचूर्णिना संशोधन- कार्य पोताना साधुओ द्वारा चालतुं हतं. ते दरमियान कारणवशात् पायधुनी उपर आवेल श्रीशान्तिनाथजी महाराजना देरासरना मकानमां आवेल श्रीसागरगच्छ प्रवचन पूजक सभाना हस्तलिखित भंडारन लीस्ट जोता तेमां श्रीआवश्यक नियुक्ति दीपिकानुं नाम वांचता ते प्रति जोवा माटे मंगावी. ते जोतां एम लाग्युं के साधु अने साध्वीओने उभय टंक प्रतिक्रमणमा बोलवाना आवश्यक सूत्रोना अर्थज्ञान माटे पू. श्रीहरिभद्रसूरिमहाराजनी तेमज पू. श्रीमलयगिरिमहाराजनी विस्तृत अने कठिन टीकाओ वंचावता पूर्वे आ दीपिका जेवो सामान्य ग्रन्थ बंचाववामां आवे तो प्रथम सामान्य बोध जलदीथी थाय अने पछी विस्तृत टीकाओ पण सहेलाईथी बचावी शकाय अने समजावी शकाय. वळी आ प्रन्थ अद्यावधि अमुद्रित छे. आ हेतुथी आ दीपिका ग्रन्थ छपाववानी एओश्रीनी इच्छा थई अने ते कार्य मारा वडील गुरुबन्धु पू. मुनि श्रीतिलकविजयजी महाराज ( हाल पं. श्रीतिलकविजयजी गणिवर ) तथा मने सोंपवामां आव्यू. त्यार पछी आ अन्थनी बीजी प्रतिओ मेळववा माटे कोशिष करता फक्त एकज प्रति पूनाना श्रीभांडारकर इन्स्टीट्यूटमाथी मळी आवी. आ प्रमाणे मळेली कुल बे प्रतिओ उपरथी प्रेस कोपी तैयार कराववामां आवी अने ते प्रेस कोपी बन्ने प्रतिओ साथे मेळवीने शुद्ध करवा माटे बनतो प्रयास करवामां आव्यो. Jain Education Internati For Private & Personal use only ww. library orgPage Navigation
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