Book Title: Avashyakaniryuktidipika Part_3 Author(s): Manekyashekharsuri Publisher: Vijaydansuri Jain Granthmala Surat View full book textPage 4
________________ आवश्यक निर्युक्तिदीपिका । ॥ २ ॥ Jain Education Internat पृच्छा थवाथी पूज्य महाराजश्रीने अमोए गई सालमां दीपिकानुं बाकीनुं काम पूरुं करी आपना विनंति करी अने अमारी ते विनंतिने स्वीकारीने पूज्य महाराजश्रीए चालु सालमां ते कार्यनी शरुआत करी पूर्ण करी आपवाथी अमो आ श्रीआवश्यक नियुक्ति दीपिकानो श्रीजो भाग सदरहु प्रन्थमालाना प्रथांक नं. ४२ तरीके वांचकजनोना करकमलमां रजु करवा भाग्यशाली थया छीए. आ त्रीजा भागने छपाववामां पूज्य पंन्यासजी महाराज श्रीतिलकविजयजी गणिवरना उपदेशथी वीरमगामना रहेवासी सुश्रावक हठीसंग तेजपाल द्वारा मळेल रु. ३५१ त्रणसो एकावन तथा पहेला तथा वीजा भागना बेचाणनी आवेल रकमनो उपयोग करवामां आवेल छे. तथा पू. पंन्यासजी महाराज श्रीमानविजयजी गणिवर तथा पू. पंन्यासजी महाराज श्रीकान्तिविजयजी गणिवरे प्रूफो वगेरे तपासी आपवामां पोताना अमूल्य समयनो भोग आप्यो छे. तथा जे साधर्मी बंधुए पूर्व पुण्यना योगे मळेला द्रव्यनो श्रुतज्ञाननी भक्ति करवा द्वारा आ ग्रन्थने छपाववामां सहाय करेली छे ते बघाओनो आ संस्था तरफथी अत्यंत आभार मानवामां आवे छे. अने आवी रीते तेओना तरफथी संस्थाने लाभ मळतो रहे एवी आशा राखवामां आवे छे. सदरहु प्रन्थना कर्त्ता माटे प्रस्तावनामां यथायोग्य दर्शाववामां आवेल छे एटले अत्रे लखवामां आवेल नथी. गोपीपुरा-सुरत लि० वि. सं. २००५ भादरवा सुद १५ श्रीविजयदानसूरीश्वरजी जैन ग्रन्थमाला व्यवस्थापक:- मास्तर हीरालाल रणछोड़भाई For Private & Personal Use Only प्रकाशकीय निवेदन ८॥ २ ॥ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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