________________ R R R 203390033905688906R एक बार आचार्य भद्रबाहु का प्रतिष्ठानपुर में पदार्पण हुआ। जनता में उनका प्रभाव बढ़ता / CR गया। इधर वराहमिहिर की भविष्यवाणी क्रमशः असत्य होने लगीं। वराहमिहिर ने अपने पुत्र के . शतायु होने की भविष्यवाणी की। इधर आ. भद्रबाहु ने भविष्यवाणी की कि इस की आयु मात्र सात CM दिनों की होगी और इसकी मृत्यु में कोई बिल्ली निमित्त बनेगी। यद्यपि जैन मुनि के लिए निमित्त ज्ञान , ल व ज्योतिर्विद्या आदि का प्रयोग वर्जित होता है, किन्तु मिथ्या अज्ञान को दूर करने तथा धर्म-प्रभावना , 3 की दृष्टि से उन्होंने यह भवियवाणी की थी। आचार्य भद्रबाहु द्वारा की गई भविष्यवाणी ही सत्य सिद्ध / ल हुई और उस बालक की मृत्यु में द्वार की एक ऐसी अर्गला निमित्त बनी जिस पर बिल्ली का आकार र बना हुआ था। आचार्य भद्रबाहु की प्रतिष्ठा सर्वत्र संस्थापित हो गई। आ. भद्रबाहु के उपदेश से प्रभावित M होकर राजा जितशत्रु ने श्रावक धर्म स्वीकार किया। ल आचार्य भद्रबाहु के मुनि जीवन में एक घटना और घटी, जिसका उल्लेख भी यहां प्रासंगिक " & है। एक व्यन्तर देव श्रावकों को अत्यधिक कष्ट दे रहा था जो वराहमिहिर का ही जीव था और जो मर ल कर व्यन्तर योनि में आया था। जनता उस व्यन्तर देव के उपद्रव से त्रस्त हो गई थी। अंत में जनसामान्य M के कष्ट को दूर करने के लिए आ. भद्रबाहु ने पंचपद्यात्मक ‘उवसग्गहर' नामक प्राकृत स्तोत्र की रचना की। इस स्तोत्र को 'पूर्व'-साहित्य से उद्धत माना जाता है। वृत्तिकार आचार्य हरिभद्र सूरि जैन आचार्यों की परम्परा के इतिहास में आचार्य हरिभद्र सूरि को अत्यधिक आदरणीय M स्थान प्राप्त रहा है, जिसकी पुष्टि अनेक आचार्यों द्वारा यथासमय अभिव्यक्त श्रद्धापूर्ण उद्गारों से .. ल होती है। ‘पंचाशक' के टीकाकार अभयदेव सूरि के अनुसार वे 'श्वेताम्बर मत के प्रवचनकर्ता / म पुरुषों में श्रेष्ठ हैं। इनका जन्म स्थान चित्रकूटनगर (आधुनिक वित्तौड़, राजस्थान) है। ये जाति के ब्राह्मण थे। ये अपने वैदुष्य के कारण चित्तौड़-नरेश जितारि के राजपुरोहित भी रहे। इन्होंने ब्राह्मण-परम्परा के महान् / 4 विद्या-गुरुओं के पास सभी प्रमुख धार्मिक एवं दार्शनिक ग्रन्थों का पर्याप्त अध्ययन किया था। संस्कृत और प्राकृत- दोनों भाषाओं में इन्होंने निपुणता प्राप्त की थी। राजशेखर सूरि ने 'प्रबन्धकोष' में इन्हें " ( चतुर्दशविद्यास्थानज्ञ ब्राह्मण कहा है। चतुर्दश विद्याओं के अन्तर्गत 'चार वेद, वेदांग, मीमांसा, न्याय, , पुराण, धर्मशास्त्र' -इनका ग्रहण होता है। वेदांगों के अन्तर्गत शिक्षा, कल्प, व्याकरण, छन्द, ज्योतिष, . निरुक्त- इन शास्त्रों का ग्रहण किया जाता है। आचार्य हरिभद्र सूरि द्वारा विविध विषयों पर लिखे गए मास VIII RROTHERO ROORBORROR ..