________________ 333333333333333332223222333223222333333333333 - -RacecacRcace श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 9009OOR | तो) विवक्षित काल के अनुरूप भजनीय हैं, अर्थात् कभी होते हैं तो कभी नहीं होते। इनमें | (विवक्षित लब्धि उपयोग की स्थिति की अपेक्षा से, न कि अपूर्व लब्धि-प्राप्ति की अपेक्षा से) " जो प्रतिपद्यमान हैं, प्रथम बार आभिनिबोधिक ज्ञान को प्राप्त करते हैं, वे प्रथम समय में तो प्रतिपद्यमान हैं, बाकी (उत्तरवर्ती) समयों में पूर्वप्रतिपन्न ही हो जाते हैं। & विशेषार्थ ‘गति' द्वार के माध्यम से आभिनिबोधिक ज्ञान की स्थिति का यहां निरूपण किया गया है। " गतियां चार हैं-देव, नारक, तिर्यंच और मनुष्य जीव किसी भी गति में हो, आभिनिबोधिक ज्ञान से , सम्पन्न होगा ही। अतः सभी जीव पूर्वप्रतिपन्न हैं। किन्तु ज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम-विशेष रूप 'लब्धि-उपयोग' की प्राप्ति की दृष्टि से वे प्रतिद्यमान हो सकते हैं, वे उक्त प्राप्ति के प्रथम समय में ही : प्रतिपद्यमान होंगे, उत्तर काल में तो 'पूर्वप्रतिपन्न' होंगें। (हरिभद्रीय वृत्तिः) तथा इन्द्रियद्वारे'। इन्द्रियाण्यङ्गीकृत्य मृग्यते।तत्र पञ्चेन्द्रियाः पूर्वप्रतिपन्नाः नियमतः / सन्ति, प्रतिपद्यमानास्तु विकल्पनीया इति।द्वित्रिचतुरिन्द्रियास्तु पूर्वप्रतिपन्नाः संभवन्ति, नतु, प्रतिपद्यमानाः, एकेन्द्रियास्तु उभयविकलाः (2) / तथा 'काय इति' | कायमङ्गीकृत्य विचार्यते।तत्र त्रसकाये पूर्वप्रतिपन्ना नियमतो a विद्यन्ते, इतरे तु भाज्याः।शेषकायेषु च पृथिव्यादिषु उभयाभाव इति (3) / (वृत्ति-हिन्दी-) (2) 'इन्द्रिय' द्वार में इन्द्रियों को आधार बनाकर मार्गणा की जा . ल रही है। इसमें पञ्चेन्द्रिय तो नियम से पूर्वप्रतिपन्न (इन्द्रिय-प्राप्त) होते ही हैं, किन्तु प्रतिपद्यमान , (इन्द्रिय-प्राप्ति कर रहे) तो भजनीय हैं (विकल्प द्वारा कथनीय हैं, अर्थात्-वे होते भी हैं, नहीं , & भी होते हैं)। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय व चतुरिन्द्रिय के धारक (जो लब्धिपर्याप्तक हैं, करण की " अपर्याप्त अवस्था में अन्य जन्म में प्राप्त सासादन-सम्यक्त्व का जिनमें सद्भाव है, वे) पूर्व , प्रतिपन्न तो हो सकते हैं, किन्तु प्रतिपद्यमान नहीं। एकेन्द्रिय तो उभयविकल (न पूर्वप्रतिपन्न : और न ही प्रतिपद्यमान) होते हैं। (3) 'काय' (शरीर) द्वार में काय को आधार बनाकर विचार किया जा रहा है। वहां : त्रस काय में पूर्वप्रतिपन्न नियम से होते हैं, अन्य (प्रतिपद्यमान) तो भजनीय हैं। शेष कायों- " पृथिवी आदि में तो दोनों (पूर्वप्रतिपन्न व प्रतिपद्यमान -इन) का अभाव है। - 108 (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r).