________________ canaana श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 99000000 333333333333333333333333333333333333333333333 / है। वह अवधिज्ञान से सम्बन्धित है। (उसका निरूपण करूंगा।) तथा आमखैषधि- आदि. & रूप में प्रसिद्ध) ऋद्धियों को जिन्होंने प्राप्त किया है, उनका (वक्ष्ये) वर्णन करूंगा। गाथा में " & ऋद्धिप्राप्त शब्द है। व्याकरण की दृष्टि से यह शब्द होना चाहिए- प्राप्त-ऋद्धि (प्राप्तर्द्धि), a क्योंकि बहुव्रीहिसमास में निष्ठान्त (निष्ठा प्रत्यय, जैसे 'क्त') 'प्राप्त' पद का पूर्वनिपात ही होता है, तथापि यह प्रयोग इसलिए किया गया है ताकि गाथा का भंग न हो, (अर्थात् गाथा , & का सौष्ठव सौन्दर्य बना रहे)। 'च' यहां समुच्चय ('और' -इस) अर्थ का वाचक है। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 26 // (हरिभद्रीय वृत्तिः) यदुक्तं चतुर्दशविधनिक्षेपं वक्ष्ये' इति, तं प्रतिपादयंस्तावद् द्वारगाथाद्वयमाह (नियुक्तिः) ओही 1 खित्तपरिमाणे, 2 संठाणे 3 आणुगामिए 4 / अवट्ठिए 5 चले 6 तिब्बमन्द 7 पडिवाउप्पयाई 8 अ॥२७॥ नाण ९दंसण 10 विब्भंगे 11, देसे 12 खित्ते 13 गई 14 इअ। इडीपत्ताणुओगे य, एमे आ पडि वत्तिओ // 28 // [संस्कृतच्छायाः- अवधिः क्षेत्रपरिमाणं संस्थानमानुगामिकः। अवस्थितः चलः तीव्रमन्दप्रतिपातोत्पादादिश्च ज्ञानदर्शनविभङ्गाः देशः क्षेत्रंगतिरिति ऋद्धिप्राप्तानुयोगश्च एवमेताः प्रतिपत्तयः।] (वृत्ति-हिन्दी-) चौदह प्रकार के निक्षेप को कहूंगा -ऐसा पहले कहा था। अब, उसी का प्रतिपादन करने हेतु (निक्षेप के चौदह) द्वारों को (शास्त्रकार) दो गाथाओं द्वारा ca कह रहे हैं (27-28) (नियुक्ति-अर्थ-) अवधि, क्षेत्र-परिमाण, संस्थान, आनुगामिक, अवस्थित, चल, तीव्र-मन्द, प्रतिपात-उत्पाद, ज्ञान, दर्शन, विभङ्ग, देश (व सर्व), क्षेत्र, गति इत्यादि (चौदह a द्वार) तथा (पन्द्रहवां) ऋद्धिप्राप्त का कथन -ये (अवधिज्ञान की) प्रतिपत्तियां हैं। 888888888888888888888888888888888888833333333 176 8888888888888890090@RO900