Book Title: Avashyak Niryukti Part 01
Author(s): Sumanmuni, Damodar Shastri
Publisher: Sohanlal Acharya Jain Granth Prakashan

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Page 305
________________ 2222222222222323 -caca ca cace cace श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 09020900900दर्शन) नहीं। अनुत्तर देवों के अवधिज्ञान का विषय क्षेत्र की दृष्टि से तथा काल की दृष्टि से भी असंख्यात होता है, किन्तु द्रव्य व भाव की दृष्टि से अनन्त होता है। किन्तु उपर्युक्त देवों की तुलना में तिर्यञ्च व मनुष्यों में अवधि की तुल्यरूपता न होकर विचित्ररूपता होती है, क्योंकि तुल्यस्थिति वाले on मनुष्यों व तिर्यञ्चों के क्षयोपशम की तीव्रता-मंदता के कारण, क्षेत्र व काल के विषय में अवधि-ज्ञान- ca दर्शन या विभङ्गज्ञान-दर्शन -इनकी विचित्रता होती है, समानता नहीं होती -यह ज्ञातव्य है। & (हरिभद्रीय वृत्तिः) इदानीं देशद्वारावयवार्थं प्रचिकटयिषुरिदमाह नियुक्तिः) णेरइयदेवतित्थंकरा य ओहिस्सऽबाहिरा हुंति। पासंति सबओ खलु, सेसा देसेण पासंति // 66 // [संस्कृतछायाः-नैरयिक-देवतीयकराश्च अवधेः अबाह्या भवन्ति / पश्यन्ति सर्वतः खलु शेषा देशेन / पश्यन्ति // ] (वृत्ति-हिन्दी-) अब 'देश द्वार' के अन्तर्गत अवधिज्ञान का निरूपण करने की दृष्टि से (आगे की गाथा) कह रहे हैं (66) (नियुक्ति-हिन्दी-) नारकी, देव व तीर्थंकर अबाह्य अवधिज्ञान से युक्त होते हैं। वे सर्वतः -सर्वदेशों से देखते हैं, किन्तु शेष (मनुष्य व तिर्यंच) एकदेश से ही देखते हैं। / (हरिभद्रीय वृत्तिः) (व्याख्या-) 'नारकाः' प्राग्निरूपितशब्दार्थाः ।देवा अपि।तीर्थकरणशीलास्तीर्थकराः। . & नारकाश्च देवाश्च तीर्थकराश्चेति विग्रहः।चशब्द एवकारार्थः, स चावधारणे, अस्य च व्यवहितः / & सम्बन्ध इति दर्शयिष्यामः। एते नारकादयः 'अवधेः' अवधिज्ञानस्य न बाह्या अबाह्या भवन्ति। / 6 इदमत्र हृदयम्- अवध्युपलब्धस्य क्षेत्रस्यान्तर्वर्तन्ते, सर्वतोऽवभासकत्वात्, प्रदीपवत् / / 4 ततश्चार्थादबाह्यावधय एव भवन्ति, नैषां बाह्यावधिर्भवतीत्यर्थः।तथा पश्यन्ति 'सर्वतः' सर्वासु ? दिक्षु विदिक्षु च। खलुशब्दोऽप्येवकारार्थः, स चावधारण एव, सर्वास्वेव दिग्विदिदिवति, सर्वत " एवेत्यर्थः। 8888888888888888888888888888888888888 222222222222222222 - 264 (r) (r)cR@ @R@ @Ren@R@ @90&cr908

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