Book Title: Avashyak Niryukti Part 01
Author(s): Sumanmuni, Damodar Shastri
Publisher: Sohanlal Acharya Jain Granth Prakashan

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Page 307
________________ -- 7.1777777777733333 383222233333333333333333333333333333333333333 cacaca cace cace श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 0000000(हरिभद्रीय वृत्तिः) अथवा अन्यथा व्याख्यायते-नारकदेवतीर्थंकरा अवधेरबाह्या भवन्तीति।किमुक्तं भवति?-नियतावधय एव भवन्ति, नियमेनैषामवधिर्भवतीत्यर्थः ।अतः संशयः-किम् ते तेन , सर्वतः पश्यन्ति आहोश्विदेशत इति, अतस्तद्व्यवच्छेदार्थमाह- पश्यन्ति सर्वत एव।आहयद्येवं ‘पश्यन्ति सर्वतः' इत्येतावदेवास्तु, अवधेरबाह्या भवन्तीति नियतावधित्वख्यापनार्थमनर्थकम्।न, नियतावधित्वस्यैव विशेषणार्थत्वादस्य, अवधेरबाह्या भवन्तीति सदाऽवधिज्ञानवन्तो भवन्तीतिज्ञापनार्थत्वाददुष्टम्। (वृत्ति-हिन्दी-) अथवा गाथा की व्याख्या दूसरी तरह से भी की जाती है- नारक, & देव व तीर्थंकर अवधिज्ञान से अबाह्य होते हैं। तात्पर्य क्या है? वे नियत अवधि वाले ही होते " & हैं, अर्थात् नियमतः ही उनके अवधिज्ञान होता है। इसलिए संशय हो जाता है कि क्या वे उस . * 'अवधि' से सब ओर देखते हैं या एकदेश से? इसलिए इस संशय को दूर करने हेतु कहासभी ओर से देखते हैं। (शंका-) यदि ऐसी बात है तो फिर 'सर्व ओर से देखते हैं। इतना ही , रहने दें, 'अवधि से अबाह्य रहते हैं' -यह कथन जो अवधि के नियत होने के लिए किया / गया है, वह अनर्थक हो जाता है। (उत्तर-) ऐसी बात नहीं है (वह कथन निरर्थक नहीं है), . . क्योंकि अवधिज्ञान के नियत होने का जो कथन है, उसी को विशेषित करने के लिए यह कहा गया है। (तात्पर्य यह है-) 'अवधि से बाह्य नहीं होते हैं', अर्थात् वे 'सदा अवधिज्ञान से - & युक्त रहते हैं' -इस तथ्य को ज्ञापित करने हेतु ही कहा गया है- 'वे सभी ओर से देखते हैं', . a अतः वह कथन निर्दोष है। (हरिभद्रीय वृत्तिः) आह- ननु नारकदेवानां भवप्रत्ययावधिग्रहणात् तीर्थकृतामपि प्रसिद्धतरपारभविकावधिसमन्वागमादेव नियतावधित्वं सिद्धमिति।अत्रोच्यते, नियतावधित्वे सिद्धेऽपि न " व सर्वकालावस्थायित्वसिद्धिरित्यतस्तत्प्रदर्शनार्थमवधेरबाह्या भवन्तीति सदाऽवधिज्ञानवन्तो - & भवन्तीति ज्ञापनार्यत्वाददुष्टम् आह-यद्येवं तीर्थकृतां सर्वकालावस्थायित्वं विरुध्यत इति, न। तेषां के वलोत्पत्तावपि वस्तुतस्तत्परिच्छेदस्य निष्ठ त्वात्, के वलेन सुतरां, संपूर्णानन्तधर्मकवस्तुपरिछित्तेः, छद्मस्थकालस्य वा विवक्षितत्वाददोष इति।अलं विस्तरेण, , शेषं पूर्ववदिति गाथार्थः // 66 // - 266 (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)ce@@necen@

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