Book Title: Avashyak Niryukti Part 01
Author(s): Sumanmuni, Damodar Shastri
Publisher: Sohanlal Acharya Jain Granth Prakashan

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Page 328
________________ -ROGRece 20309050202000 22222233333333333333333333333333 नियुक्ति गाथा-16 (वृत्ति-हिन्दी-) (व्याख्या-) मनःपर्याय ज्ञान के शब्दार्थ का पहले निरूपण किया ca जा चुका है। ‘पुनः' (तो) शब्द विशेषण अर्थ को व्यक्त करता है, अर्थात् यह सूचित करता है , कि यह ज्ञान मूर्त द्रव्यों में होने वाले क्षयोपशमिक प्रत्यक्ष (मतिज्ञान) से साम्य रखता हुआ , भी, अवधिज्ञान से भी स्वामी आदि की दृष्टियों से 'विशेषता' रखता है, अतः उसके स्वरूप : को प्रतिपादित करते हुए कहा- 'जन-मन-परिचिन्तित-अर्थप्रकटन' / जो उत्पन्न होते हैं, वे // जन हैं (यहां संज्ञी जनों से ही तात्पर्य है)। उनके मन द्वारा चिन्तित होने वाले पदार्थ, इस अर्थ में समास होकर यह (जनमनपरिचिन्तितार्थ) शब्द बना है, उसे जो प्रकट करता है " अर्थात् प्रकाशित करता है। यह 'मनुष्य-क्षेत्र' है, अर्थात् ढाई द्वीप-समुद्र प्रमाण क्षेत्र तक ही , सीमित है, अर्थात् उसे बाहर स्थित किसी प्राणी के मन द्वारा चिन्तित पदार्थ में प्रवृत्त नहीं होता। गुण यानी क्षमा आदि, वे ही जिसमें प्रत्यय यानी कारण होते हैं, वह गुणप्रत्ययिक होता है। चारित्र जिसके होता है, वह चारित्रवान्, उसी के यह ज्ञान होता है। तात्पर्य यह हैजो अप्रमत्त संयत है और आमशैषधि आदि ऋद्धिधारी है, उसी के ही यह ज्ञान होता है। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ 6 || विशेषार्थ नियुक्ति की प्रस्तुत गाथा नन्दी सूत्र में (सू. 38) भी पठित है। इसमें यह बताया गया है कि मनःपर्यायज्ञानी प्राणियों के मन द्वारा चिन्तित ‘पदार्थ' को प्रकट करता है। इस सम्बन्ध में जैन परम्परा की दो विचारधाराओं का भी यहां संकेत करना उचित होगा। एक विचारधारा यह मानती है कि मनःपर्यायज्ञानी मन द्वारा चिन्त्यमान वस्तु को साक्षात् जानता है। दूसरी विचारधारा के अनुसार व चिन्तनप्रवृत्त मनोद्रव्य की पर्यायों को जानता है, चिन्त्यमान पदार्थों को तो उन पर्यायों के आधार पर ca अनुमान से जानता है। प्रथमविचारधारा के समर्थक हैं- विशेषावश्यक भाष्य के रचयिता आचार्य जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण और नन्दी चूर्णिकार आदि। नियुक्तिकार आपाततः प्रथम विचारधारा के समर्थक प्रतीत होते हैं। नियुक्तिकार ने यहां जो गाथा प्रस्तुत की है, वह नन्दी सूत्र की ही है, अतः वह आगमोक्त ही & है। किन्तु श्वेताम्बर परम्परा के प्रमुख आचार्य दूसरी विचारधारा के ही अधिकांशतः समर्थक हैं। 3 उनका कहना है कि नियुक्तिकार का भी आशय दूसरी विचारधारा के प्रतिकूल नहीं कहा जा सकता, -88888888888888888888888888888888888888888888 64 (r)(r)(r)(r)(r)(r)comc@ 280@cr@@ 287

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