Book Title: Avashyak Niryukti Part 01
Author(s): Sumanmuni, Damodar Shastri
Publisher: Sohanlal Acharya Jain Granth Prakashan

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Page 341
________________ -RRRRRace श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 0000000 आचारचूला से फलित है- केवलज्ञानी सब जीवों के सब भावों को जानता-देखता है। ज्ञेय ce रूप सब भावों की सूची इस प्रकार है- 1. आगति 2. गति 3. स्थिति 4. च्यवन 5. उपपात 6. भुक्त 7. 2 a पीत 8. कृत, 9. प्रतिसेवित, 10. आविष्कर्म- प्रगट में होने वाला कर्म 11. रहस्य कर्म 12. लपित , a 13. कथित 14. मनो- मानसिक। बृहत्कल्प भाष्य में केवलज्ञान के पांच लक्षण बतलाए हैं 1. असहाय-इंद्रिय मन निरपेक्ष / 2. एक- ज्ञान के सभी प्रकारों से विलक्षण / 3. अनिवारित व्यापार- अविरहित उपयोग वाला। 4. अनंत-अनंत ज्ञेय का साक्षात्कार करने वाला। -222333333333333333333333333333333333332223338 5. अविकल्पित- विकल्प अथवा विभाग से रहित। तत्त्वार्थ भाष्य में केवलज्ञान का स्वरूप विस्तार से बताया गया है। वह सब भावों का ग्राहक, संपूर्ण लोक और अलोक को जानने वाला है। इससे अतिशायी कोई ज्ञान नहीं है। ऐसा कोई / ज्ञेय नहीं है जो केवलज्ञान का विषय न हो। उक्त व्याख्याओं के संदर्भ में सर्व द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की व्याख्या इस प्रकार फलित : होती है- सर्व द्रव्य का अर्थ है मूर्त और अमूर्त सब द्रव्यों को जानने वाला। केवलज्ञान के अतिरक्ति : कोई भी ज्ञान अमूर्त का साक्षात्कार अथवा प्रत्यक्ष नहीं कर सकता। सर्व क्षेत्र का अर्थ है- संपूर्ण आकाश (लोकाकाश और अलोकाकाश) को साक्षात् जानने ce वाला। सर्वकाल का अर्थ है- सीमातीत अतीत और भविष्य को जानने वाला। शेष कोई ज्ञान असीम काल को नहीं जान सकता। सर्व भाव का अर्थ है- गुरुलघु और अगुरुलघु सब पर्यायों को जानने वाला। केवलज्ञान या सर्वज्ञता की इतनी विशाल अवधारणा किसी अन्य दर्शन में उपलब्ध नहीं है। , C केवली या तीर्थंकर के केवलज्ञान व केवलदर्शन- दोनों होते हैं। वे क्रम से होते हैं, या एक साथ होते . 6 हैं- इस विषय में दो विचारधाराएं हैं। एक तीसरी विचारधारा भी है जो इन इन दोनों को अभिन्न ce मानती है। क्रमिक पक्ष आगमाधारित है और इसके मुख्य प्रवक्ता हैं- आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण। " / युगपत्वाद के प्रवक्ता है- मल्लवादी। अभेदभाव के प्रवक्ता हैं-सिद्धसेन दिवाकर। . - 300 (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)ce@@

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